हिन्दी गीतिनाट्य परम्परा के परिप्रेक्ष्य में समकालीन हिन्दी गीतिनाट्यो का मूल्यांकन | Hindi Geetinatya Parampara Ke Pariprekshya Men Samakaleen Hindi Geetinatyo Ka Mulyankan

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Hindi Geetinatya Parampara Ke Pariprekshya Men Samakaleen Hindi Geetinatyo Ka Mulyankan by अबेका निरंजन - Abeka Niranjan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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को इस नाटकीयता के साथ प्रस्तुत करता है कि दर्शक मुग्ध हो जाता है। इसी भावाभिव्यंजना की प्रधानता को देखकर आलोचकों ने उसे -भावनाटय' की संज्ञा दी है। उदयशंकर भट्ट के अनुसार-“गीतिनाद्य में कथिक व्यापार नहीं होते केवल मानसिक चिंतन का सतत प्रदर्शन होता है। 2- भावों की कोमलता-भावान्विति के साथ-साथ भावों की कोमलता गीतिनाट्य की दूसरी विशेषता हृदय के कोमल भावों को व्यक्त करने के लिए ही लेखक पद्य का सहारा लेता हे, क्योकि गद्य में अन्तर्यगत के सूक्ष्म भावों को व्यक्त करने की वह क्षमता नहीं है जितनी पद्य मे होती हैं, तथी तो टी. एस. ईलिपट ने कहा कि “यदि संसार पर अपने विचारों का स्थायी प्रभाव डालना है, तो हमेअपनी बात कविता में ही कहनी चाहिए ।” भावों को मर्मस्पर्शी और कोमल होना रसमयता और प्रभावोत्पादकता के. लिए अनिवार्य हे। संगीत की स्वरलहरी ओर माधुर्यं कं बीच गीति-नाट्य का कथानक पाठक को रस मग्न कर देता हे। मूर्छना-भरे मादक भावो से प्रभावित रक्षक अपूर्वं सुख का अनुभव करता हे । ১৫ 3--सर्घष की प्रधानता-आधुनिक गीतिनाटयों का प्रधान व्यकछेदक तत्व _ अंत संर्घष हैं। भावों की प्रधानता के कारण 'संर्घष” स्वभवता बाह्य न होकर आन्तरिक होता हे अर्थात मन की एक भावना का दूसरी भावना के विरुद्ध सं्घष ही यहां मिलेगा | यही आन्तरिक संर्घष गीति नाटय का प्राण तत्व है गीतिनाट्य कार. आन्तरिक सूर्घष दवारा भावात्मक सत्यो को प्रति भाषित करता है| फलस्वरूप गीति ` _ नाट्य सीधे मानव जीवन की गहराइयों तक पहुंचने का प्रयत्न कराता है| 4-- सुन्दर प्रकृति विधान-प्रकृति का मानवीय भाव रागो ओर मनः ( ` स्थितियो से घनिष्ट सम्बन्ध है । प्रकृति के माध्यम से हृदय के भावों को प्रतीक रूप , ~




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