झाँसी जनपद में स्टोन क्रेशर उद्योग में कार्यरत श्रमिकों की आर्थिक प्रवृत्तियों का विश्लेषणात्मक एवं आलोचनात्मक अध्ययन | Jhansi Janapad Men Ston Kreshar Udyog Men Karyarat Shramikon Ki Aarthik Pravrittiyon Ka Vishleshanatmak Evm Aalochanatmak Adhyayan
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
221 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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शुरू की। धातुओं के बने ओजारों से अन्य प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन भी आसान हो गया।
धीरे-धीरे, मनृष्य वस्त्र, लकड़ी और चमड़े के सामान, विभिन्न प्रकार के उपकरण, वाहन आदि
का उत्पादन करने लगा। धातुओं के बने हथियारों से शिकार भी आसान हो गया। इस तरह
मनुष्य की उत्पादन सम्बन्धी क्रियाएं दिनों दिन विकसित होती गई। आर्थिक विकास का यह
सिलसिला आने वाले दिनों में भी चलता रहा। बाद में, मनुष्य सोना,चांदी तथा हाथी दांत के
प्रयोग, पत्थर की मूर्ति, रंगाई, धुलाई, भवन-निर्माण तथा अच्छे ढंग के वाहन बनाने आदि के.
क्षेत्रों में प्रगति करने लगा।
धातुओं के प्रयोग ने उत्पादन-कार्य में व्यापक रूप से विविधता ला दी। कुछ प्रकार के
उत्पादन में हुनर या कोशल जरूरी हो गया। उन्हें साधारण अकुशल श्रमिक नहीं कर सकता था।
त्पादन-कायं मे विविधता आने से एक ही व्यक्ति के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन
करना ऊअसम्भव हो गया। इस तरह, उत्पादन में श्रम-विभाजन और विशिष्टीकरण आवश्यक होता
गया। साथ ही, इस प्रकार के उत्पादन में कुशल कारीगरों की संख्या में वृद्धि होती गई। इन
परिवर्तनों के परिणामस्वरूप उत्पादन या अन्य आधिक क्रियाकलापों के लिए विभिन्न व्यावसायेक
श्रेणियों का उदय होता गया जैसे- किसान, खेतिहर मजदूर, पशु-पालक, शिकारी, बढ़ई, जुलाहे,
लोहार,
या कौशल के आधार पर स
मोची, मूर्तिकार, चित्रकार, धोबीराज आदि। पहले इन व्यवसायों में लोग अपनी क्षमता
मलित होते थे, लेकिन बाद में ये व्यवसाय वंशानुगत होते गए।
औद्योगिक क्रांति के बाद, श्रम के स्वरूप में आधारभूत परिवर्तन हुए मशीनों और शक्ति
के नए साधनों के आविष्कार ने उत्पादन क्रिया को जड़ से बदल दिया। मशीनों के आगमन से
उत्पादन-कार्य अनेक क्रियाओं और उप-क्रियाओं में बंट गया और प्रत्येक क्रिया और उप-क्रिया|
पर अलग-अलग प्रकार के श्रमिकों को काम पर लगाया गया। अब श्रमिक उत्पादन-सम्बन्धी
किसी एक छोटे से कार्य पर नियोजित होने लगे। इस तरह मशीनों के आने से श्रम-विभाजन
आवश्यक हो गया। नयी-नयी प्रकार की मशीनों के आविष्कार और ओद्योगिक विकास से
विभाजन और भी जटिल होता गया। उद्योगों के साथ-साथ, कृषि का यंत्रीकरण भी होने लगा
पते कृषि-उत्पादन में भी अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई। कृषि-उत्पादन में भी श्रम-विभाजन
होने लगा। उत्पादन के पैमाने बढ़ने लगे और बड़े-बड़े कारखानों में बड़ी संख्या में
श्रमिक एक साथ काम करने लगे। औद्योगीकरण के प्रसार से कई परम्परागत व्यवसाय लुप्त होने
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