मांसाहार - विचार भाग - 1 | Mansahar Vichar Bhag 1
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
623 KB
कुल पष्ठ :
50
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं ईश्वरलाल जैन - Pt. Ishwarlal Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(५)
(07०6 ) हैं वे श्रौर दूसरे दान््तों मे बड़े, तेश शीर
चुके श्र भागे को तरर निले दश होते है ओर वई भनि
खाने के लिये बड़ा सुमीता प्रदान फरते हैं किस्तु शाकाहारी
जीब्रों के सब दास्त दक ही कतार में दोते हैं, इस से घह मांस
मत्तश के लिये भयोग्य हैं, अतः किसी भी दृष्टि कोण से अर्थात्
मनुष्य के दस्त, शारोरिक ढांचा, जबड़ा तथा पाचक यम्त्रों फो
ध्यान में रखते हुए स्पष्ट रूप से पता लगता हैं कि बह बस्दर से
मिन्नता है शो कि प्राकृतिक कट्टर शाकाद्वारी दै।
बुक बड़ा ই সর জী स्पष्ट है कि मांखाहरी जानवर
अब पानी पाते हैं, तब अबान से अर्थात् छपलपा कर पीते हैं, ये
हाथी, धोड़े, व बैल भ्रादि निरामिपाहारो ज्ञीबों की तरह दोनों
होठ मिला खींच कर पानी नहीं पी सकते । इससे भी यदी
मालूम होता है, क्रि मनुष्य का शरीर मसाहारियों से नहीं
मिलता |
मांसादारियों की आंखें भी निगात्तिष भोजियों से भद
बख्तो हैं, मांसाहारी ज्ञानवरों की सेत्रश्योति सूर्य का प्रकाश
सदन नहीं फर सकृती 1 लेकिन ये शत को दिन की भांति दे
सकते हैं, रात को उनका आंखें दीपक के सामने «्गारे की तरह
ছয় हैं। परन्तु मठ॒ष्य दिन को भल्तो भांति देख मकता है,
सूर्य का प्रकाश उसका विधातक नदीं बक्ति सहायक है, आर
मजुष्प की आज रात को न तो चम्रऊतो हैं और न ही प्रकाश के
সিনা थे देख सकती है।
জরি
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