पुस्तक प्रकाशन | Pustak Prakashan

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Pustak Prakashan by मुनीश सक्सेना - Muneesh Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ क्षणके लिए भूलकर आपको उनसे साफ-प्राफ कह देना चाहिये कि यदि से पम्तककों हतना महत्त्व नहीं देते कि उसे खरीदकर पढे तो अच्छा होगा कि वे उसे पढे ही नहीं । यह पुस्तक लिखनेम मेरा अ्यत्र यह रहा है कि विद्ादअस्त सम- स्पाओपर जहॉतक सम्भव हो सके, निष्पक्ष रूपसे प्रकाश डालें, आर हमेशा मेरा ऊप््य विरोधी तध्पोके बजाय उन बातोका पता लगाना रहा है जिनपर विरोध न हो । साहित्यका बदता हुआ व्यवसायीकरण--जो कद्माचित्‌ अनिवार्य “है---छेखकी और प्रकाशकोके वीच अधिक साम क्षरयपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करनेम सहायक नही हो रहा हे. इसका आधार यह गलत धारणा ह कि पाण्डुछिपियों और पुम्तके केवल क्रय-विक्रयकी वस्तुएं है ; थे जीवित नहा, मृत वरतुषु हे । इस धारणाम लेखक और उसकी रचनाके विचित्र आर बाम्तवमे पिता-एन्रफेसे सस्वन्घपर उचित ध्यान नहीं दिया गया है, आर इसी सत्यक्ता ज्ञान होना प्रकाशकम चुद्धिमत्ताका पहला चिद् है। मुश्ते आशा हैं कि प्रकाशफाकी कठिनाइयों बतानेके उत्साहमे मेने लेसफकोओे प्रति अलहानुभूतिका प्रदर्शन नही किया है । मे सचाईके खाथ यह बात वह सकता हैं कि यदि में लेखफ्रोऊे दृष.्टक्रोणको इसनी रप्टतासे न देखता होता तो शायद यह एुस्तक झिखना बहुत हो आसान हो जाता। सुख्पतः অন্তুমনভাল হকালটা সন্চালনউ ব্যড হস লমললল सहायता देने आर इस प्रकार उनके दार्यकों सरल बना देनेफी आशार्स ही कई नये छेरफोजे कहनेपर मेने एुस्तक-प्रक्राशनकफा यहां संक्षिप्त बिब- र्ण लिखनेशा कास स्वीकार किया । यदि জুতা अपने इस प्रयासओे हारा नये छेसशोसा मामं सरटः बनाने किगिस्साथ कली सफरता प्राप्त हई और यदि वय पम्तकओ द्वार शेयरों जार प्रशाधरोंओे सोच अधिक পনি আক ভাত আল্লা ই হল ঘানি হরলম আলাল জিলা লাম জহি আগ চা অযয়্লা । চর




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