संसार की श्रेष्ठ कहानियाँ भाग 5 | Sansar ki shreshth Kahaniyan Bhag 5
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लेखक -ए० फ़रोग।रस।रो | १५
मालगरी धर लौट श्रई । उसने मत्स्य बलि के बारे में किसी
को कुछ भी नहीं बताया । परन्तु उसने कभी भिर् कोतारीना से नहीं
पूछा कि संगीत और कविता से उसे क्यो दूर रक्ला जाता है ।
उस दिन के बाद फिर वह कभी नहीं हँसी | वह ओर भी अधिक
गम्भीर होती जाती थी और बहुत ही दयालु हो गई थी ।
टापू में जो कोई भी किसी कष्ट में होता, तो वह दोड़ी जाती ओर
उसकी तकलीफ़ दूर करने की चेष्टा करती और अपनी सहानुभूति
झोर सहायता बिखरा कर उसे आनन्दित कर देती । उनके घरों में स्थान
पाने के साथ ही साथ, वह उनके ह्ृदयों में भी स्थान पा गई थी ।
वह जहाँ पहुँचती उजेला कर देती और लोगों को प्रसन्न-चित्त छोड़
कर आती |
शाम को वह अक्सर समुद्र के किनारे जाती, किन्तु फिर कभी उसे
मत्स्य-बालिकायें न दीखों ।
जब वह पन्द्रद वर्ष की हुई, तो उसके सुन्दर मुख ओर लम्बे सुग-
ठित शरीर को देख कर, कोई भी उसे अठारह वर्ष की बता सकता
था । कोंतारीना को उसके लिये वर की चिन्ता होने लगी ।
जोवान्नी कोंतारीनी दो वर्ष से नहीं आये थे । वे पत्र भी बहुत
कम लिखते थे, दो महीने में केवल एक बार जब कि बोरसारी सौदागर
के जहाज़ रिआ्राल्तो से आते समय टापू के पास से निकलते थे ।
एक बार जहाज़ कोई पत्र नहीं लाया | केवल यदी समाचार था
कि वैनिस में प्लेग का विकट प्रकोप है।
कोंतारीना की परेशानी का ठिकाना न रहा | अपने पति के संकट
का विचार आते ढ्वी वे अपने को दोष देने लगीं कि वे बेचारे वहाँ प्लेग
में पड़े होंगे ओर वे यहाँ दूर बैठी हैं। उनकी परेशानी, मालगरी की
यह बात सुनकर कि वेनिस लौटना हम लोगों का कत्तंव्य है, और
भी बढ़ गई । मातगरी अपने निश्चय पर दृढ़ रही ।
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