रामचरितमानस [हास्य रस] | Ramcharit Manas [Hasya Ras]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( छ )
वड़ा नदीं हने पावा कि ठस काण्ड द कमयत में कोट फर्क पे |
कचि का चमत्कार यट हकि करणम क प्राहु म গুন হম सभी
उस रश्य को मानों भूल ही-सा जाते # आर अश्ाध्यावासियां के
साथ केंफेयी और मन्धरा की कोसते €। कति भी उस दृश्य का
तनिक देर के लिये सामने लाकर फिर हमारे ही साथ जाता है और
केकेयी तथा मच्यरा के प्रति कुछ वसा दी बतता जान पढ़ता ४ ।
ऋषि-आश्रमों मे पहँचकर ही रहस्यों का कुछ प्रकटोीकरण शुरू किया
जाता हैं, इससे पथ नहीं। इस दृश्य का आनन्द यह है कि वह
स्वयं भी रसमय हैं। शा महोदय ने भी इस युक्ति क्रा प्रयोग
किया हूँ, पर वहाँ मस्तिप्कीय वातावरण अधिक ओर भावुकता
एवं आध्यात्मिकता कम है |
(ই) चित्रकूट से चल पड़ने पर महाकाव्य-कला का ब्रिकास
चहत अधिक स्पष्ट होना प्रारम्भ होता है। ऋषिगण भगवान राम
को हडिडयों के उस ढेर के पास से ले जाते है जो विशेष प्रवन्ध से
जमा किया हुआ प्रतीत होता है। कान होगा जो बेंसे बड़े ढेर
को देखकर प्रभावित न हो ? रामजी ते भी प्रश्न किया कि ये
हडिडयाँ किन की हूं। जब उत्तर मिला कि ये उन ऋपषि-मुनियों की हैं
जिन्हें राज्सों ने खा डाला है, तो राम का आधिदेधिक व्यक्तित्व
एक दम पूर्णतः जाम्रत हो गया। उन्होंने एक घोर सद्गुल्प किया--
निसिचर हीन करडं महि, भुज उठ पन कन्द ।
तदुपरान्त न हम साधारण संसार में हैं ओर न घटनायें ही
साधारस् हें । वानरगण वे देवता है जो ब्रह्मा के आदेश से वानर
रूप धारण कर रासागसन को राह देख रहे थे | राक्षस भी कामरूप
सायावी दानव थे । कवि एक जगह लिखता रै--
जानि न जाइ निसाचर माया । कामरूप............ ...... ... ॥
पर वहाँ भी नाटकीय कला को हाथ से नहीं जाने दिया गया।
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