भारत में मुद्रा और बैंकिंग का विकास | Bharat Me Mudra &banking Ka Vikash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय २
मोद्रिक मान
मुद्रा का प्रयोग धीरे-धीरे हमारे दैनिक जीवन मे सभी प्रकारकी
चस्तुजो जौर सेवाओ का मूल्य मापने के काम आने लगा । अत यहु अति
आवश्यक हो गया कि मुद्रा मूल्यवान धातु की बनायी जाय जो सभी को
, मान्य हो। सोना अथवा चॉँदी ही इस योग्य माने गये कि इनकी मुद्राएँ
सर्वेमान्य हो। इस प्रकार किसी देश ने एक धातु की मुद्रा प्रचलित की
ओर किसी ने दूसरी धातु की मुद्रा का प्रयोग किया। सोने और चॉदी
दोनो की मुद्राएँ प्रयोग मे लायी गयी। कही-कढद़्ी दो या दो से अधिक
धातूओ को मिलाकर मिश्चित धातु की मुद्रा भा प्रयोग मे आयी। बाद मे
पत्र-मृद्रा का प्रयोग बहुत व्यापक हो गया।
मुद्रा-पद्धति देश की आधिक परिस्थितियो ओर देश-वासियो की
आवश्यकताओ के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। एक धातु वाली प्रणाली
मे एक ही वातु क प्रमुख मद्रा देश कौ समस्त वस्तुभो ओर सेवा का
मल्याकन करती है। अन्य प्रकार की मुद्राएँ उसी एक मुद्रा के मूल्य से
सम्बन्धित रहती है। एक धातुवाद मे निम्नङिखित तीन विशेषताएँ
होती है। ~
(१) एक ही मुद्रा देश की प्रमुख मुद्रा हो जो असीमित संख्या मे
अयोग में लायी जा सकती हो।
(२) नृद्राकौ ढलाई स्वतन्त्ररूप सेहो सकती हो, अर्थात् कोई
भी नागरिक उस धातु से सरकारी टकसाल मे मुद्रा बनवा सके ।
(३) अन्य सभी प्रकार की मुद्राएं सकेतिक मद्रा मानी जायं जिन्हे
किसी भी समय प्रमुख मुद्रा मे परिणित किया जा सके ।
भारतवषे मे १८९३ ई० के पूर्व देश की प्रमुख मुद्रा चाँदी का रुपया
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