काव्य कल्पद्रुम | Kavya - Kalpdrum

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Kavya - Kalpdrum by ज्योतिलाल भार्गव - Jyotilal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ . कान्य-कल्पद्रुम उनकी काव्यरचना प्रायः उपयोगी और चित्ताकषक नहीं हो सकती और न उनको काव्यावलोकन द्वारा यथाथे आनंदाजु- भव ही हो सकता है। इसका कारण यही है कि वे आायः साहित्य-शात्र से अभिज्ञ नहीं और न वे परिचित होने का ' “कष्ट ही उठाते हैं। काव्य-रचना एवं काव्य के आस्वादन के लिये साहित्य-शासतर के अध्ययन की परमावश्यकता है। कविवर संखक ने कहा है-- 'अन्ञातपाण्डित्यरहृस्यमुद्रा ये काव्यम दघतेऽभिमनम्‌ ते गर्डीयाननयीत्य मंत्रान्दासदसप्वादनमरभन्ते \ ( श्रीकंड-चरित ) निदान, काव्य-प्रणेता को एवं काव्य-प्रेमी जनों को काव्य- निर्माण के साधन और उसके रहस्य अवश्य जान लेने चाहिए | काव्य के निर्माण होने में देतु-- कारण क्या है ९ काव्य-प्रकाश में कहा है-- “शक्तिनिपुणताकोकशख्तकाब्याद्वेक्षणतत्‌ ‡ काज्यशशिक्षयाभ्यास इति देतुस्तदुदरवे \* शक्ति, निपुणता और अभ्यास काव्य-रचना के लिये आधार हैं। शक्ति--यह्‌ काव्य का वीज-रूप एक संस्कार होता है।




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