धर्मधिर्मविचार | Dharmadharmvichar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्माधर्म विचार । षट्
संसारा में गृहिणी नदीः व्याहकी जो मानों हुकुम
तिहारा ॥ पैसा बिनु इस हाट मेँ प्यारे चलता नदीं
गुज़ारा। चोरी करो कहीं से लावो देशो दान हमारा ॥
ना्हिन मार खायगा मेरी समस्त नारिं गमारा ९1
पुजारी का विलाप ।
. हाय प्यारी! मारडाला !! तू अधर में लटकाके धन--
-यौवन सर्वेस्व लेकर अब इस प्रकार प्राण लेती है !!!
प्रतिष्ठ गयी, ठाकुरसेवा-पूजा बन्द हुई, में यह नहीं
जानताथा कित् सु उद्पपे मे दसा धोखा देगी । अव
तेरे कारण सुझे नगर छोड़नापड़ेगा। इतना कृह उसके
वहां से रोते हुए निराश होकर उठे; कुछ समय में मन्दिर
का दिया गुल करके चेले को छोड़ नगर से निकल
गये । पंचों ने फिर मन्दिर का प्रबन्ध पं० सुन्नालाल
ब्राह्मण के पुत्र पुजारी अमरनाथजी के सिपुरद्द किया ।
जंब चेला भी गुरुजी के वियोग से तड़फ २ के मर-
गया; तब लज्नूबाबूजी ने जो मन्दिरके पासही रहते थे,
निम्नलिखित सुहक्ले के पंच एकत्रित किये। সী बाबू
हरीसिहजी, भी बाबू लालविहारीसिंहजी, और
मियां अलीज़फ़रजी । चेले के बिस्तर में से सिर्फ
१०) रु० निकले। सर्वसम्मति से चेले के मरने से पह-
लेही इन पंचों ने मन्दिर अमरनाथ प्रुजारीजी के
सियुदे किया ।
चेलेका शरीर ओऔगंगाजीमें भस्म किया गया और
पजारीजी से कहा जो बंधान हम लोगों के वहां से
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