पखवारा | Pakhavara
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री नारायणप्रसाद अरोड़ा - Shri Narayana Prasad Arora
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)সস
एक विचिन्न बिक्री ]
1
जन ने गुस्सा होकर पूछा--फ्यों जी क्या तुम्हारा मतलेब 'यह है कि
तुम दोनों नशे में थे ! ২ ক কটি এ
ब्र,मेंट--इसमें तो शका करने की कोई ब्रांत ही नही है |
कानूं--हर एक की ऐसी अ्चरथा हो सकती है |
जज ने श्रीमती ब्र.सेट से कहा--त॒म श्रपना আযান জারী কী |
वह बोली--''फरिर 'ब्रुमेंट” ने मुझसे कहा क्रि क्या तुम सौ रुपये:
कमाना चाहती हो मैने कहा, 'हों?, क्योंकि मै जानती थी कि सौ रुपये राह
में पड़े हुए नही मिल जाते । तब उसने मुझसे कहा कि अपनी श्रोखें खोलो
और जैता मैं कहता हूँ वैसा करो । बह गया, और कोने में जो खाली पीपा
मेंह के पानी के लिये रक्खा रहता था, उसे उठा लाथा। उसने उसे उल्लट
दिया और मेरे रसोईघर मे गया और बीचोंब्रीच मे उसे जमा व्या। और
ধন কুইন জাগা कि जाओ, पानी लाकर इसे पूरा-पूरा मर दो ।
“मैं दो घडे लेकर पास के तालाब में गई और चहाँ से पानी लाकर
उस पीपे को मरने लगी | हुजूर, पीपा बहुत ब्रडा था इस लिए उसको पूरा
भरते में मुझे एक घटा लग गया |
` इष सारे समय से ब्र,मेट और कारू गिलास पर गिलाम जमति गये |
ये लोग ग्रपनी बोतल कगेव-करीव खाली कर चुके थे, उस समय मैंने इनसे”
ते कि तुम्र लोग तो मेरे पीपे से मी ज्यादा मरे हुए मालूम देते हो | পুত
मुझसे जवाब मे कहा कि तुम इस बात की परवा मत करो, ठुम अपना काम
किये जाओ तुम्दारा भी वक्त आवेगा, हर एक काम जैंगा हुआ है > बह पिये
है था इसलिए मैने उसकी बात पर अधिक भ्यान नहीं दिया। जब पीपाः
रायालत्र भर गया तब मैने उनसे कहा, यह लो, काम हो गया °
“ओर तत्र कानूं --ब्र,मेंट नहीं, कार्नू ने सुके सौ रुपये दिये গীত পুত:
ने कहा, 'क्या तुम और सौ रुपये, कमाना चाहती हो ९ मैने कहा, 'हों,? क्योकि
इस तरह मुक्ध में रुपया पाने की अम्यस्त न थी। तत्न उसने मुझसे कहा.,
अपने कपडे उतार डालो |?
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