सच्चे सुख का मार्ग | Sachche Sukha Ka Maarg

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Sachche Sukha Ka Maarg by प्रेमचंद जैन - Premchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ सकते । इसलिये यदि हमको मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करना है तो हमे बुरे कर्मों के साथ-साथ अच्छे कर्मों को भी छोड़ना होगा । इसी प्रकार की साधना करते रहने से ही एक समय ऐसा आयेगा जब हमारे सब प्रकार के कर्म नष्ट हो जायेगे, और तभी हम मोक्ष प्राप्त कर सकेगे। एकबार मोक्ष प्राप्त कर लने पर्‌ हम सदव-सदव के लिये मोक्ष मे ही रहेगे । फिर हमको नये-नये शरीर धारण करने (जन्म मरण करने) तथा सुख दुख भोगनेके चक्कर मे पडना नही पड़ गा । उन विचारको ने दूसरी व तीसरी श्रेणी के विचारको की मान्यता के विरुद्ध किसी भी तथाकथित सर्वशक्तिमान तथा इस विश्व के कर्त्ता, हर्त्ता व पालन कर्ता परमेश्वर का अस्तित्व मानने से इकार कग दिया । उन्होने कहा कि यह विश्व अनादिकात से (सदव से ) ऐसे ही चलता आया है और अनन्त काल तक (सर्देव तक) ऐसे ही चलता रहेगा । न तो किसी तथा- कथित सर्वेशक्तिमान परमेश्वर ने किसी विशेष समय में इस विश्व का निर्माण ही क्या था और न वह परमेश्वर कभी इस विश्व का विनाश ही करेगा। हा प्राकृतिक कारणों, जैसे--भूकम्प, बाढ, भूस्खलन, जलवायु- परिवर्तन आदि से इस विश्व में स्थानीय परिवर्तन होते रहते है । उन विचारको ने यह भी बतलाया कि यह प्राणी स्वयं ही अपनी अच्छी व बरी भावनाओं का कर्ता है। इन्ही भावनाओं के अनुसार ही यह प्राणी अच्छे व बरे कार्य करता रहता है और उन अच्छे न बरे कर्मो का फल भी बह रवय टी भागता रहता है । अपने द्वारा किये हुये अच्छे व वरे कर्मो का फल प्रत्येक प्राणी को स्वत (8069172110211) ভী मिलता रहता है। किसी भी प्राणी को उसके द्वारा किये हुए कर्मो का फल देने मे किसी भी तवाकथित सर्वशवितमान परमेश्वर का कोई हाथ नहीं होता । उन विचारको ने यह भी बतलाया कि प्रत्येक प्राणी स्वय ही, अपने कर्मो का नप्ट करके अपनी आत्मा को परम पवित्र करके, मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त कर सकता है। किसी भी प्राणी को किसी भी महापुरुष अथवा तथा- कथित परमेह्वर के आशीर्वाद अथवा वरदान के फलस्वरूप मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त नही हो सकता । यह्‌ मोक्ष (मुक्ति) तो प्रत्येक प्राणी को स्वय उसके अपने सत्‌-पुरुषार्थ से ही प्राप्त हो सकता है। एकबार मोक्ष प्राप्त कर लेने पर वह प्राणी किसी की न तो बुराई ही करता है, न भलाई ही । वह सब प्रकार के सकलपों-विकल्पों से मुक्त होकर अनन्त काल तक (सदेवके लिये) सच्च सुख और परमआनन्द की अवस्था में ही रहता है । समस्त




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