अतिक्रान्त | Atikrant
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अतिक्रान्त | १५
हुआ है । उसका गुर्सा एक पर्दा और चढ़ा !
वेरा सन्तोप ! प्रेयसी पत्नी की निन्दा वद् बर्दाश्त नही कर सकता, इस
कारण उसके भाचरण मे यशर मनावस्यक व्यस्तत्ता मीर प्रास दिखाई पड़ता है।
शङ्कम्वला क्यो मर इम प्रेम की प्रवाद् नही 1 उसका अपना धमाल हैं कि बुराई
किसी ने की तो करे, मेरी ज्ूती की नोंक पर ! पुदप का यह जनानापन उससे सहा
नही जाता ।
मयर बाह रे सन्तोप ! माँ-चाप के सामने आते ही वह एकदम वौना हो
जाता है ।
अब नाराज होने से णा फायदा, बोतो ? बेटे को तुम जब वश्ष में कर ही
नही पाई” कहता हुआ सस्तोप चौकी पर बैठ गया ।
क्रोध से उफनती शजजुन्तवा दाँत पीख कर बोली, 'मेरा कोई बेटा-वेटा नही ।!
“भरे छि', यह क्या कह रही हो ? नाराज होती हो तो तुम होश-हवाप सब
জী ইতনী হী)?
“ठीक ही कहती है । वेटा मेरा कहाँ ??
शदुन्तला कौ पीठ सदलाते हये खन्तोप ने सह से कट्, (यो नाराज होती
ष्ट? दादी-गाया से बहुतेरे बच्चे हिल जाते हैं, मा-वाप से ज्यादा मानते हैं। इसमें
इतना क्या सका होना ? ब्या मुझे कुछ कम्र बुरा लग रहा है? कैसा बढ़िया घर
मित्रा है। शितती उम्मीद और उमंग से छुट्टी लेकर आया था, तुम दोनो को ले
जाऊंगा, घर बसाऊँगा *व!
सन्तोप का हाय कटक कर श्वकुस्ततला ने विफर कर कहा, कल सुबह मैं
जारऊँगी--चाहे जैसे हो ॥!
, “अभी तक तो मुझे भी इसी की आशा है। पर यह लड़का ऐसा भरकर &?
मातरम नदी कल फिर वधा करे ।'
“उससे कया लेना-देना ? उसे मैं लेकर जारऊँगी ही गदी, प्दे वह् यहां भपने-
अपनों के साथ । मैं उसके बिना ही जाऊँगी।!
सस्तोष ने इसे शतुन्तला के क्रोप का भावावेश समझा । दुःसमरी मुस्कान छा
गई उसके मुख पर। धीरे-पीरे कहने लगा, “उम्र वक्त वाकई इस क़दर गुस्सा भा रहा
था कि मेरा भी जी चाह रहा था कि उसे छोड़ कर ही हम चले जायें ।?
शया तारीक क तुम्दारी ? तुम्हारी इच्छा “इच्छा' होकर ही रह जातौ
है। अपनी इच्छा को अब मैं कार्य में बदलती हैं ।” दुंढ आत्मविश्वास से घबुस्तता ন
कहा 1
उदासी से सन्धोप ने कहा, “यह तो मुमकिन नहीं ॥*
क्यो ? क्यों मुमकिन नहीं 2?
वतोन साल के बच्चे को छोड़, परदेश जाकर बसें उसके मॉँन्याप ? यह भी
कभी हो सकता है ?!
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