अतिक्रान्त | Atikrant

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Atikrant by अलका मुखोपाध्याय - Alka Mukhopadhyayआशापूर्णा देवी - Ashapoorna Devi

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आशापूर्णा देवी - Ashapoorna Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अतिक्रान्त | १५ हुआ है । उसका गुर्सा एक पर्दा और चढ़ा ! वेरा सन्तोप ! प्रेयसी पत्नी की निन्दा वद्‌ बर्दाश्त नही कर सकता, इस कारण उसके भाचरण मे यशर मनावस्यक व्यस्तत्ता मीर प्रास दिखाई पड़ता है। शङ्कम्वला क्यो मर इम प्रेम की प्रवाद्‌ नही 1 उसका अपना धमाल हैं कि बुराई किसी ने की तो करे, मेरी ज्ूती की नोंक पर ! पुदप का यह जनानापन उससे सहा नही जाता । मयर बाह रे सन्तोप ! माँ-चाप के सामने आते ही वह एकदम वौना हो जाता है । अब नाराज होने से णा फायदा, बोतो ? बेटे को तुम जब वश्ष में कर ही नही पाई” कहता हुआ सस्तोप चौकी पर बैठ गया । क्रोध से उफनती शजजुन्तवा दाँत पीख कर बोली, 'मेरा कोई बेटा-वेटा नही ।! “भरे छि', यह क्‍या कह रही हो ? नाराज होती हो तो तुम होश-हवाप सब জী ইতনী হী)? “ठीक ही कहती है । वेटा मेरा कहाँ ?? शदुन्तला कौ पीठ सदलाते हये खन्तोप ने सह से कट्‌, (यो नाराज होती ष्ट? दादी-गाया से बहुतेरे बच्चे हिल जाते हैं, मा-वाप से ज्यादा मानते हैं। इसमें इतना क्या सका होना ? ब्या मुझे कुछ कम्र बुरा लग रहा है? कैसा बढ़िया घर मित्रा है। शितती उम्मीद और उमंग से छुट्टी लेकर आया था, तुम दोनो को ले जाऊंगा, घर बसाऊँगा *व! सन्तोप का हाय कटक कर श्वकुस्ततला ने विफर कर कहा, कल सुबह मैं जारऊँगी--चाहे जैसे हो ॥! , “अभी तक तो मुझे भी इसी की आशा है। पर यह लड़का ऐसा भरकर &? मातरम नदी कल फिर वधा करे ।' “उससे कया लेना-देना ? उसे मैं लेकर जारऊँगी ही गदी, प्दे वह्‌ यहां भपने- अपनों के साथ । मैं उसके बिना ही जाऊँगी।! सस्तोष ने इसे शतुन्तला के क्रोप का भावावेश समझा । दुःसमरी मुस्कान छा गई उसके मुख पर। धीरे-पीरे कहने लगा, “उम्र वक्त वाकई इस क़दर गुस्सा भा रहा था कि मेरा भी जी चाह रहा था कि उसे छोड़ कर ही हम चले जायें ।? शया तारीक क तुम्दारी ? तुम्हारी इच्छा “इच्छा' होकर ही रह जातौ है। अपनी इच्छा को अब मैं कार्य में बदलती हैं ।” दुंढ आत्मविश्वास से घबुस्तता ন कहा 1 उदासी से सन्धोप ने कहा, “यह तो मुमकिन नहीं ॥* क्यो ? क्यों मुमकिन नहीं 2? वतोन साल के बच्चे को छोड़, परदेश जाकर बसें उसके मॉँन्याप ? यह भी कभी हो सकता है ?!




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