रजत जयंती ग्रन्थ | Rajat Jayantee Granth
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
120 MB
कुल पष्ठ :
599
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ढो० घीरेन्द्र वर्मा
का बाप नागर्यी* क्यों ण्डा?
वर्माजी का जन्म बरेली के एक सम्पन्न कायस्थ परिवार में
१७ सई १०६७ को हुआ था। शिक्षा लखनऊ, इलाहाबाद
एवं पेरिस विश्वविद्यालयों में हुई । वर्षों इलाहाबाद विश्व-
विद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे । हिन्दुस्तानी
एकेडमी के संस्थापकों में हैं। आजकल सागर विश्वविद्या-
लय में भाषा-विज्ञान विभाग के अध्यक्ष हैं। 'हिन्दी भाषा
का इतिहासः, न्नजभाषा', नागरी अक ओर अक्षरः आदि
लगभग सत्तर वषं पूवं १८९४ मे महामहोपाध्याय पंडित
गोरीशंकर हीराचन्द ओझा ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ
भारतीय प्राचीन लिपिमाला' में इस सम्बन्ध में दो-तीन
अनुमान दिए थे। इनका सार निम्नलिखित है। नागरी
शब्द की उत्पत्ति के सम्बन्ध में बहुत मतभेद है। कुछ
विद्वान इसका सम्बन्ध नागर ब्राह्मणों से लगाते हैं अर्थात्
नागर ब्राह्मणों में प्रचलित लिपि नागरी कहलाई | कुछ छोग
नगर शव्द से सम्बन्ध जोड़कर इसका अथं नागरी अर्थात्
नागरों में प्रचलित लिपि करते हैं। एक मत यह भी है
कि तांत्रिक यत्रो मे कुछ चिल्ल वनते थे, जो देवनगर' कह्-
खाते थे । इन चिल से मिर्ते-जुल्ते होने के कारण यही
नाम इस लिपि के साथ सम्बद्ध हो गया । तांत्रिक समय
में नागर लिपि' नाम प्रचलित था । अन्त में ओझाजी का
कहना है कि इस लिपि के देवनागरी या नागरी नाम पड़ने
के कारण वास्तव में अनिश्चित हैं । ५
१८९६ में नगेन्द्रनाथ वसु ने एशियाटिक सोसायटी
आव बंगाल की प्रोसीडिशज (नं० २, पृ० ११४-१३५)
में नागरों तथा नागरी लिपि की उत्पत्ति' शीबंक एक लेख
लिखा था, जिसमें उन्होंने उपर्युक्त तीन अनुमानों के अति-
रिक्त एक चौथा अनुमान भी दिया था कि यह पहले नाग
बम्बई-हिन्दी-विद्यापीठ
आपकी प्रमुख कृतियाँ हैं ।
लिपि के नाम से प्रसिद्ध थी। बाद को इसका नाम नागरी
लिपि हो गया । किन्तु वसु महोदय ने नागर ब्राह्मणवाले
मत का ही अपने लेख में समर्थन किया है। उनके तर्को का
सार निम्नरिखित है। नागरी छिपि का प्रयोग प्राय: गुज-
रात के उन ताम्रपत्रों में हुआ है, जो उत्तर भारत के ब्राह्मणों
को दान देने के सम्बन्ध में हैं, वे ब्राह्मण प्रायः कान्यकुब्ज,
पाटलिपुत्र तथा पुड़वर्धन आदि के हैं। अत: नागरी लिपि
कदाचित् उत्तर-भारत से इन ब्राह्मणों के साथ गुजरात गई
होगी । €्वीं-१०वीं शताब्दी के लगभग गुजरात के राष्ट्र
कूट राजाओं ने गौड़, बंग, कलिंग, गंग, मगध, मालवा
आदि देशों तक अपना राज्य फेलाया और उनके साथ उनके
नागर पुरोहितों की लिपि भी इस नाम से उत्तर भारत में
प्रसिद्ध हो गई ।
नागरी लिपि की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई मतभेद
नहीं है । ओझाजी के अनुसार उत्तर भारत की कुटिल लिपि
से ही नागरी लिपि विकसित हुई | कुटिल लिपि का सम्बन्ध
गुप्त छिपि के माध्यम से ब्राह्मी लिपि से है। प्राचीन नागरी
की पूर्वी शाखा से दसवीं शताब्दी ईसवी के लगभग प्राचीन
बंगाली लिपि निकली | प्राचीन नागरी से ही गुजराती,
केथी, महाजनी आदि उत्तर भारत कौ अन्य लिपियाँ भी
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