वैदिक वाड्मय में विष्णु का स्वरूप | Vadic Vangmay May Vishnu Ka Swroop

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Vadic Vangmay May Vishnu Ka Swroop by उमानाथ दूबे - Umanath Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ प्रण विर्व का धारक तथा टद्यक है । आरण्यक एव उपनिष्ट्‌ साहित्य परस्पर इतने संरिलष्ट है कि इनकी पृ थक्‌ भां निर्धारित नहीं की जा तकती । वैदिक ताहित्य में उपनिष्ठें सब्से अरवाचीन साहित्य के छूप में मानी जाती हैँ ।उपतिष्दे अत्मा एवम्‌ ब्रहम ठेक्य प्रतिपिाटन के साध-ताथ शरीर से उत्तका पार्थक्य भी प्रतिपादित करती है | पह आ एंमा को अक्रड, अद्वितीय एवम सर्वव्यापक मानती है तथा ब्रहम कौ अनन्त दित्य ग़क्ति मानती हैं | तत्त्वमप्ति इस महावाक्य के द्वारा आत्मा और ब्रहम का উই प्रत्तिपादन किया गया है । इत प्रकार हम ठेते है कि ब्राहमण-साहित्य गार्हस्थ्य जीवन में है वाले कर्मकाण्ड की व्याख्या है ती 7रण्यक एवम्‌ उपनिष्ट्‌ प्ताहित्य एकान्त निखच्छन्न अरण्य में ब्रहुमचर्य से वानप्रस्थी का गम्भीर भीतिक चिन्त ই | वस्तुतः वैदिक वाद्धमय वह आध्यात्मिक मानरोवर दै जहाँ से ज्ञान की निर्म। मंदाकिनी विश्व के दार्शनिकों के अन्तःकरण को अआप्नावित करती हुईं आज भी ज स्पते प्रवाहित रही ই | नष्ट वेदी के उद्वार के लिट भगवान विष्णु न्ने त्वयं मत्स्य पा हयग्रीव अवतार गरहणं करके वैदिक वाद्ध्मप की रघ्षा की । अतः वैदिक घाहित्य मे विष्णु के किन स्वरूपो का कते वर्णन কিঘা বাঘা है इसका अध्ययन करना ही प्रकृत शोध का विष्यदहै। `




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