संस्कृत महाकाव्यों में चामत्कारिक शैली | Sanakrit Mahakaavyon Me Chamatkaarik Shailii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
53 MB
कुल पष्ठ :
387
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किये गये काव्य लक्षणा पर एक दृष्टि डालनी होगी। सर्वप्रथम काव्य लक्षण निर्धारण का प्रयास
नाट्य शास्त्र के प्रणेता भरतमुनि से आरम्भ हो जाता है।
आचार्य भरत का मुख्य विवेच्य विषय नाट्य है, इसलिए उनकी काव्य परिभाषा भी इस
दृष्टि से प्रभावित है। इन्होने काव्य का लक्षण दिया- कि “जो मृदु एव ललित पदो से समृद्ध,
गूढ शब्दार्थ से रहित, जनपदो मे सरलता से समझ मे आने वाला, युक््ति युक्त नृत्य प्रयोग के
योग्य, बहुरसमार्ग समन्वित, सधियो के प्रयोग से युक्त हो वह नाटक प्रेक्षकों के लिए शुभकाव्य
ই”?
भरत के अनन्तर सर्वप्रथम अग्निपुराण मे काव्य के स्वरूप पर विचार किया है।
अग्निपुराणकार' काव्य लक्षण का निरूपण करते हुए कहते है-
सक्षेपाद्ाक्यमिष्टार्य व्यव च्छन्ना पदावली |
काव्य स्फुरदलङ्एकार गुणवद् दोषवर्जितम् | अग्निपुराण
अर्थात इष्ट अर्थ से युक्त पदावली को काव्य कहते है ओर स्ट अ लड् कार सर युक्त,
गुणयुक्त एव दोषरहित वाक्य को काव्य कहते हे |
किन्तु परवर्ती आचार्यो ने सभ्यता के आदिकाल से ही शब्द ओर अर्थ के माध्यम से
साहित्य का निर्माण होता है ऐसा स्वीकार करते रहे । इसी दृष्टि से प्रत्येक अलड्कारवादी ने
अपने-अपने विभिन्न प्रकार के काव्यलक्षण बताये |
सर्वप्रथम छठी शता० के आलकारिक “आचार्य भामह ने काव्य का लक्षण प्रस्तुत करते
हुए कहा कि- शब्द ओर अर्थ का साहित्य काव्य हे। तात्पर्य यह है कि- काव्य मे शब्द ओर
अर्थ की योजना रहती हे ये दोनो अन्योन्याश्रित हे | काव्य लक्षण मे आया हुआ शब्दार्थं साहित्य
का आशय- अलकार युक्त शब्द एव अर्थ से है। इस प्रकार आचार्य भामह ने काव्य मे शब्द
ओर अर्थ दोनो को समान महत्त्व प्रदान किया |”
आचार्य भामह के पश्चात् आचार्यं रूद्रट ने काव्य का लक्षण देते हुए कहा कि- काव्य
वह है जिसमे शब्द ओर अर्थ साथ-साथ रहते हो, क्योकि शब्द काव्य का ही बोधक है। शब्द
ओर अर्थ का सम्मेलन ही साहित्य है|
1 मृदुललित पदराद्य गृूढशब्दार्थं हीन, नाशा - 164८128
जनपद सुख बोध्य युक्त्िमन्नृत्ययौज्यम् |
बहुकृतरसमार्ग, सन्िसन्धान युक्त,
सं भवति शुभकाव्य नाटक प्रक्षकाणाम् ||
2 शब्दार्थो सहितौ काव्यम् - भामह - काव्यालकार - 1/16
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