प्राचीन भारतीय साहित्य एवं कला में अप्सरा का प्रतिबिम्बन | Prachin Bharatiy Sahity Avam Kala Men Apsara Ka Pratibimban

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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171 करते हुए उन्हे देवत्व, अर्द्धदेवत्व स्वरूप प्रदान करने का भी विश्लेषण ऋग्वैदिक साहित्य मे प्राप्त होता है। ऋग्वेद मे एेसे कई उद्धरण है जिसमे स्रियो का एक वर्गं अप्सरा के रूप मे प्रस्तुत किया गया है। यद्यपि अप्सराएं अपने आप मे स्वतन्त्र थी तथापि इनका विशेष सम्पर्कं गन्धर्वो के साथ था। इन अप्सराओ तथा गन्धर्वो का एतिहासिक स्वरूप ऋग्वेदिक साहित्य मे स्पष्ट रूप से विदित नही होता है किन्तु उनके विविध क्रिया-कलापो का चित्रण वैदिक साहित्य से स्पष्ट होता है। ऋग्वैदिक काल मे युद्ध का अधिक महत्व था, अत युद्ध मे आर्यो को शामिल करने के लिए वीरगति प्राप्त योद्धाओ को स्वर्गलोक तक पहुचाने ओर स्वर्गलोक मे उनका अभिनन्दन का कार्य अप्सराओ को सौपा गया है। तात्पर्यतः अप्सराएं वे देवकन्याएं प्रतीत होती है जिनका सानिध्य वीरगति प्राप्त योद्धाओ को प्रदान करने का वर्णन प्राप्त होता है। ऋग्वेद मे अप्सराओ को इन्द्र के निर्देशानुसार कार्य करने वाली देवकन्याओ के रूप मे वर्णित किया गया है। चकि इन्द्र आर्यो के जातीय देवता हैँ ओर उनके दरबार मे अप्सराओ की उपस्थिति, आर्यो के सन्दर्भ मे अप्सरा के महत्व को प्रदर्शित करता है। वैदिक साहित्य मे अप्सराओ के अनेक नाम मिलते हैं जिनमे उर्वशी, मेनका, शकुन्तला, सहजन्या, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, विश्वाची, विशेष रूप से उल्लेखनीय है किन्तु इन नामो और वर्णित प्रसंगो के आधार पर यह स्पष्ट नही होता है कि ये प्रकृति या ईश्वर के किस प्रारूप का प्रतिनिधित्व करती है, किन्तु यह अवश्य स्पष्ट हो जाता है कि अप्सराएं मानवीय स्त्रीरूपा के रूप मे भी वर्णित है। अप्सराए वैदिक साहित्यो मे दैवीय और मानवीय दोनो रूप धारण करती हैं, जिस प्रकार इन्द्र आर्यों के जातीय देवलोक के देवता, मानवीय रूप धारण करते है। ऋग्वेद मे वर्णित उर्वशी-पुरुरवा प्रसंग विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसमे उर्वशी मानवीय स्त्री का प्रतिरूप है ओर पुरुरवा एक एतिहासिक व्यक्ति है। जो यह प्रामाणित करता है कि मानव को अप्सराओ के साथ, देवलोक मे देवकन्या के रूप मे नही बल्कि पृथ्वी पर मानवी स्त्री रूप मे अनेक स्वरूपो के साथ, प्रस्तुत किया गया है।




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