प्रभा - पुंज | Prabha - Punj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
123
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भरा पु [ ५
है। तुम यहाँ यह कर रहे दो । घर तुम्हारा लाड़का हरिया
कथा फर रहा है, इसका भी पता हे १
दीनां-- উন্তজী ! मेश हरिया हजार में एक है। आप
तो खुद जानते हैं। मेरी कितनी खेघा करता था । बिना पूछे
घर से बाहर कृद्म न रखता था । तनिक जुकाम हुआ नहीं
कि बार पाँच दिन ख़ुद रोटी बनाता । शहर में और कोन
दूसरा था जो सब को पेर छूकर प्रणाम करता था १
सेठजी-- पर अब वे हरिश्धन्द्र शर्मा दो गये हैं, पद्विले
हरिया नहों रहे । नमस्ते ठोकते हैं। भंगी-चमारों में जा उत्त
के साथ खाते हैं । अपने बाप वादों को सूख बताते हैं कि
उन्होंने भाद्ध, झुर्ति-पूजा आदि जारी की । थे आये समाज्ी
चम गये इ
दीना ने कानों पर हाथ धरकर कहा-- राम ! राम !!
सेठज्ी, मेश हरिया भंगी चमारों की छाँवकी भी नहीं ले
सकता । बह् तो पास बाले मन्दिर में रोज़ आरती कराता था।
सेटजी-- तो भई।मैंने जैसा सुना कद दिया । मेरा
लड़का भी तो उसी स्कूल में पढ़ता है! बह हो कह रहा था |
दीना को विश्वास न हुआ । वह फौरन डाकखाने से
एक लिफाफा लाया । उसने रिया कै लिये चिटी लिखवाई-
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