प्रभा - पुंज | Prabha - Punj

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Prabha - Punj by गोपीनाथ तिवाड़ी - Gopinath Tivadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भरा पु [ ५ है। तुम यहाँ यह कर रहे दो । घर तुम्हारा लाड़का हरिया कथा फर रहा है, इसका भी पता हे १ दीनां-- উন্তজী ! मेश हरिया हजार में एक है। आप तो खुद जानते हैं। मेरी कितनी खेघा करता था । बिना पूछे घर से बाहर कृद्म न रखता था । तनिक जुकाम हुआ नहीं कि बार पाँच दिन ख़ुद रोटी बनाता । शहर में और कोन दूसरा था जो सब को पेर छूकर प्रणाम करता था १ सेठजी-- पर अब वे हरिश्धन्द्र शर्मा दो गये हैं, पद्विले हरिया नहों रहे । नमस्ते ठोकते हैं। भंगी-चमारों में जा उत्त के साथ खाते हैं । अपने बाप वादों को सूख बताते हैं कि उन्होंने भाद्ध, झुर्ति-पूजा आदि जारी की । थे आये समाज्ी चम गये इ दीना ने कानों पर हाथ धरकर कहा-- राम ! राम !! सेठज्ी, मेश हरिया भंगी चमारों की छाँवकी भी नहीं ले सकता । बह् तो पास बाले मन्दिर में रोज़ आरती कराता था। सेटजी-- तो भई।मैंने जैसा सुना कद दिया । मेरा लड़का भी तो उसी स्कूल में पढ़ता है! बह हो कह रहा था | दीना को विश्वास न हुआ । वह फौरन डाकखाने से एक लिफाफा लाया । उसने रिया कै लिये चिटी लिखवाई-




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