श्री हरिभूषण | Shri Haribhushnam

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Shri Haribhushnam by जगन्नाथ शास्त्री - Jagnnath Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हि विश्वनाधजञीरी प्रश्न॑तामें इस घंटनाऊां उलेस कहीं नदीं किया हे, अतः कान्य - उक्त सम्वत पूर्वं बना दोगा, यद्‌ भी विशेष सम्भव हे। हर छवि हत फा स्वयिता कविका नाभ शङ्ा्त॑म चा ओर पिताका नम भाधव भट्ट था, निसका प्रत्येक सर्गके अन्तिम छोकमे श्रीहर्ष फबिके समान उद्लेख कर्ता है । प्रस्तुत काज्यको यह তি महाक्राव्य कददकर अपने लिये महाकंदिे और दिकचक्रविरुघातथी अधथांत्‌-विश्रका प्रसिद्ध बुद्धिमान ऐसे घड़े २ तिशेषणोका प्रयोग करता दे, परन्तु संभी सर्गोकी कंबिता इस प्रशसा* का समर्येन नहीं करती है | इस कबिने अपनी जातिका उल्लेख कई नहीं किया है, | केवढ 'ड्््यप्निमेलमेद॒पाटविलसदंशैकचूडामणिश्रीसनन्‍्माधव- भंदखूरितनय: इस वश और पिताके नामके परिचायक पदेसे ओमाजी भद्दारानने अनुमान किया दे कि यह भंटट-मेवाडा जॉतिका आक्ष्ण होगा। अनुमान इस तरद् है कि उक्त चरणके मिद्॒पादविलसद्ददा इतने अशमे कविने अपना वंश मेयोडमें बवाया है. और “श्रीमन्माघव भदः इस अशम पिताके मामके साथ “भट्ट' शब्इका प्रयोग किया है, अत इन दोनों से मिलकर ५ मेदेपाटबशीय भटर ” यह अर्थ निकछता है, जो कि “ भट्ट मेवाडा ” शखब्दका सातप दे, परन्तु यदि इसके पोषक अन्य प्रमाण न हों, तब तो यह अनुमान स्थूछ दै, क्योकि मद्ारावतजी श्रीहरिसिहजी के समय कई अन्यज्ञातीय भट्ट भी मेंबाडसे आये हुए यद्दा थे। अतएव पाठकोंके सामने में भी अपने अनुमानोकों प्रस्तुत करता दू, सम्भव दै इनसे भी कुद तत्य सिद्ध हो । কান दीक्षागुरु पण्डित विश्वनाथजी ' कीटसे्ी ! वालोकी यहुन प्रशसां इस काव्यमें की दे, जो कि त्रिवाडी मेवाडा ब्राह्मण थे, इसालिये सम्भव दे, यह, भी ्रिवाडी भेवाडा श्राक्षण हो, क्योंकि जातिग्रेम प्राय मनुष्योमें होता दी है । दूसरा भनुमान यह दे कि बाणसाताजी के भूत-पूष पूजक भट्ट अत्मारामज़ी के मकानके खेंदद्॒र्म से ७ ताम्रपत्र किसी मनुप्यको देवछियेमे मिले थे, जो उसने खासगी क्चद्॒रीमें पेश कर दिये हैं, इन ताप्रपानोमें से एक वि० स० १७०५ बेशाख सुदी १४ गुरुतारका है और यह महारावतजी सादिव- की माता श्री चपाकुवरने दरिद्वारम माधव भट्टनी के लिए भूमिदान किया या;




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