राम कहानी | Ram Kahani

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Ram Kahani  by शुद्धात्मप्रभा टडेया - Shuddhatmaprabha Tadaiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला दिन 7 दशरथः! को राजलक्ष्मी सौप कर बडे पुत्र अनन्तरथ के साथ अभयसेन मुनि के पास जाकर दिगम्बरी दीक्षा ली। सो उचित ही है; क्योकि ससार से उदास, वैराग्य-प्रवृत्ति वाले निर्मोही व्यक्तियों की वृत्ति एेसी अदभुत ही होती है। राजा अनरण्य ने मुनि बनकर घोर तपस्या की, जिससे उन्होने कर्मो का नाश कर मुक्तिरमा का वरण किया तथा उनके बडे पुत्र मुनि बनकर पृथ्वी पर बिहार करने लगे। क्लेशरहित बास परीषह का पालन करने से वे “अनन्तवीर्यः नाम से प्रसिद्ध हुए। कुछ काल पश्चात्‌ इन्होंने भी मुक्ति प्राप्तकी और उनके छोटे भाई राजा दशरथ माँ की देख-रेख मे बड़े होकर सुखपूर्वक राज्य करने लगे। राजा दशरथ की चार शादियाँ हुई थीं। उनकी पत्नियों के नाम थे -- अपराजिता (कौशल्या), सुमित्रा, कैकेई और सुप्रभा; जिनसे राम, लक्ष्मण, भरत और शबत्रुघ्न--इन चार पुत्रो की उत्पत्ति हुई। सम्यग्दृष्टि परम वैभवशाली राजा दशरथ अपने राज्य को तृण समान मानते थे। धार्मिकं प्रवृत्तिवाले राजा दशरथ ने अनेको नये मन्दिर बनवाये, पुराने मन्दिरो का जीर्णोद्धार कराया। एकबार जब राजा दशरथ राजसभा मे तत्तवचर्चा कर रहे थे किं तमी नारदजी आये ओर एकान्त होने पर उन्होने बताया किं तीन खण्ड के सम्राट अर्द्धचक्री दशानन को सागरबुद्धि नामक निमित्तज्ञानी ने बताया है कि उनकी मृत्यु दशरथ के पुत्र व जनक की पुत्री के निमित्त से होगी, जिसे सुनकर दशानन 'चिन्तित हुआ। अर्द्धचक्री दशानन को चिन्तित देखकर उनके १ पश्पपुराण ` पर्वं १२, श्लोक १६६




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