सूर काव्य में नृत्य - भंगिमा | Sur Kavya Men Nritya Bhangima
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
105
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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मिलते हैं, उन संबसे यही सिद्ध होता है कि सूर जन्मान्ध थे । किन्तु उनकी
स्चताओं में रंगों, शरीर की बाह्य चेष्टाओं तथा प्रकृति के विभिन्न व्यापारो के
सूक्ष्म वर्णनों तथा उपभानों के यथात्तृथ्य विधानों से ऐसा प्रतीत होता है कि
जन्मान्ध नहीं थे । किन्तु यह तकं सूरदासजी जसे महान् भक्त के लिए अन्तिम
प्रमाण नहीं माना जा सकता । “यह विश्वास भौतिक परिणति के अभाव में एक
वैज्ञानिक को तो सन्तुष्ट नहीं कर सकता : वह पिण्ड में आँखों को उदित हता
नहीं देख सकता । पर अत्तर्ज्ञान की क्षतिपुरक प्रखरता, या अन्य किसी इन्द्रिय
की शक्ति में वृद्धि हो जाना, एक स्तर पर मनोविज्ञानी को स्वीकृत है | दाशंनिकों
के मतानुसार यही अन्तर्ज्ञानि या स्वयं प्रकाश ज्ञान का विकास है। इसी का नाम
दिव्य दृष्टि या अच्तदु पिट है।? नाभावासजी के 'भक्तमात्र' की निम्नलिखित
पकितियों सै भी इसी कथन का समर्थनं होता दै--
प्रतिबिम्बित दिवि दुष्टि, हृदय हरि लीला भासी
जन्म, कर्म, गुण, रूप, सब रसना जु प्रकासी ॥
इस प्रकार वहिसक्ष्य के आधार पर सूरदास का जस्मान्ध होना प्रमाणित
है | डॉ० हरबश लाल शर्मा का कथन है, “अच्त:साक्ष्य में भी यत्र-तत्र उनके
अन्धत्व पर तो स्पष्ठ प्रकाश है किन्तु जन्मान्धत्व पर प्रामाणिक पदों की उपलब्धि
नहीं हुई है। फिर भी उनके जन्मान्ध न होने अथवा गाद में अन्धे होने के सम्बन्ध
में न तो कहीं से कोई साक्ष्य मिलता है और न इतने वृहत सूरसागर में कही'
कोई झलक मिलती है । इसलिए इतिहास्त-पुप्ट प्रमाणों के अ्ञाव में सूर को
जम्मान्ध्र ही स्वीकार करना उचित है |
सूरदास का कृतित्व
कविकुल-शिरोभणि महात्मा सूरदास द्वारा सवा लाख पदों की रचना करता
प्रसिद्ध है। 'चौरासी वार्ता के वार्ता प्रसंग 3' के प्रारम्भ में लिखा है--“और
सूरदासजी ने सहस्लावधि पद किए हैं। ताको सागर कहिए | सो सब जगत से
प्रसिद्ध भये ।” यहाँ हस्लावेधि पद कई सहर पदों के चयोत्तक है । गोस्वामी
हरिययजी ने चौरासी वातां की भावाख्य विकृति में सूर के पदों की संख्या
लक्षावधि लिखी है ! ^सूरदासवी के सवा लक्ष पद बनाने की किम्वदन्ती जो
प्रसिद्ध है वह ठीक विदित होती है, क्योंकि एक लाख पद तो श्री वल्लभाचाय के
शिष्य होने के उपरान्त ओर सारावली के समाप्ते होने तक बनाए । इसके आगे-
पीछे के अलग ही रहे।* 'सूर सारावली' में भी एक लक्ष पदों की बात स्वय
1 डा० चन्द्रभान रावत ; सूर साहित्य : नव स् ल्यांकत, १० 39
2 डा० हस्वंश लाल शर्मा (सम्पादक) : सूरदास, पु० 19
3 श्री राधाकृप्णदास : श्री सूरदा्जी का जीवन चरित, पुर 2
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