हरियाणा लोकमन्च की कहानियाँ | Hariyaana Lokmanch Ki Kahaniya

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Hariyaana Lokmanch Ki Kahaniya by राजाराम शास्त्री - Rajaram Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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त || अपितु आरमामिव्यक्तिके साधनसे है । चाहे वह शब्दो द्वारा हौ अथवा निना शब्दोके कै स्थानो पर हजार शब्द मिलकर भी वह भाव व्यक्तं नहीं कर सकते जो केवल किसी विशेष अगकी एक भगिमा मासे व्यक्त हो सकता है। इसीलिए अपनी विशेष मगिमा सात्र ठेकर मंचपर अवतीण होनेवाले मूकपात्र दर्शक पर जो प्रभाव छोड जाते हैं वह अधिक बोलने- वाले पात्रोसे भी शायद सम्मव नहीं | कई नाटकोम निर्जोव पटाथाका भी वह प्रभाव देखा जाता है जो शायद सजीव पात्रोसे भी सरुम्मव न हो। मेरे 'बडबेरी' एक पात्रीय नाट्कम एक ठूठ जो प्रभाव छोड जाता है। वह दशनीय है | यह बात स्वयसिद्ध है कि किसी भी साहित्यिक कृतिके लिए कहानी, पात्र, कथोपकथन आदि सत्र गौण पदार्थ है। साहित्यकारका एकमात्र कर्तव्य रह जाता है भावाभिव्यक्ति और भाव पुष्टि | चाहे वह शब्द द्वारा हो अथवा निःशब्द । वातावरण निर्माणसे हो अथवा किसी अन्य प्रकारस | उसके लिए. यह आवश्यक हो जाता है कि अपने दशकी अथवा श्रोताओ- को देश, काल आदिकी परिधिसे ऊपर उठाकर सर्बदेशीय, सावकालिक स्थितिम ले जाये । केवल्मात्र घटना अथवा वातावरणका वर्णन उसका कतेव्य नही | वह किसी राजा-महाराजा अथवा धनिकका वन्दीजन नहीं, और गरीबो और मजदूरोका वकोछ हो है। वह है केवल्मात्र और सच्चा भावाभिव्यक्तिकार | उस भावाभिव्यक्तिमें राजा-महाराजा और सेट- साहूकारकी किसी अंशमें प्रशस्ति भी हो सकती है ओर गरीत्र मजदूरोका क्रन्दन भी । किन्तु वह सत्र होगा भावामिव्यक्ति ओर उसीकी पृष्टिके छिए,, ओर उतनी ही मात्रामें जहोँ तक उससे इसकी सिद्धि होती हो । कुछ विद्वान इतिहास, मनोविज्ञान आठिपर बल देते हूँ किन्नु इति. हासका सम्बन्ध कालविशेषसे है और मनोविज्ञानका केवलमात्र मानसिक शुत्थियोको सुल्भानेसे | किन्तु जिस स्थितिमें एक साहित्यकार अपने दर्शक अथवा श्रोताको देश-कालकी परिधिसे ऊपर उठा लेता है वहाँ इतिहास




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