जवान की दीपावली | Javan Ki Dipawali
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
841 KB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजूसिह :
श्रीपतं
राजूसिह
श्रीपत
राजूसिह
श्रोपत
হাতি
ध्नोपत्त
राजू सह
লীন
राजूतिह्
( ५ )
( उठकर ) आप चाय पीना भूल तो नहीं गए ?
[ राजू तह उठकर चाय बना कर एक রণ নিলা को
एक श्रीपत को देता है) एक एक् प्लेट नमकीन मिठाई
वी भी उनके सामने रख देता है फिर स्वय एक कप अपन
जिए चाय बनाकर लता है 1 ]
( चाय को चुस्की लते हुए ) एक बात पूछू भइया ?
( कप को रखत हुए ) एक क्यो दो पूछी ।
तुमकों युद्ध मे भय नही लगता ?
( हसवर ) भय | भय किसका ? “ भनुष्यो वा ?
*** नहीं नही शन्रुओ का। * वोरताके आग ***
हा हा ध्क्ति के आगे भय कापकर মণ जाता है। व्यौ
यही पूछना चाहते हो ?
( सकंपकाकर } नही** * ** फिर हिनक्तिताकर **
*** * कया वार पर वार देख कर भी तुम **?
प्रच्छा तो तुम कटना चाहव हो कि बया हम मृत्यु से नहीं
डरते ?
( मौन रहना है। )
( प्रसन्नता से ) तो सनो । मृत्यु से मय की कौनसी बात
है ? भगवान बृष्ण ने गीता मे अजुन को कहा है --' जात-
स्यहि ध्रचोगृत्यु ' ( जो उत्पन्न होता है उसते लिए
भूयु निश्चित है ) भौर तुम जानते हो कि घर म॑ रहने
मे>-वही छिपने से--क्य। मृत्यु छाड़ देगी ?
पर मरना कौन चाहता है ?
प्रिय मित्र भूव रत हो तुम देक्गपियर बे” उस कथन
को -- डेय इज बट ए नसमरी एए'--और फिर यद्ध से
आन पर तो दोहरा लाघ देती है--भ्रपन द्वव्य पालन स,
देश सेया बा व स्पर्म-पाप्ति का ।
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