दिल की गहराई से भाग 1 | Dil Ki Gaharayi Se Bhag 1

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Dil Ki Gaharayi Se Bhag 1 by ज्योतिप्रकाश - Jyotiprakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इ साफ के ताम पर ६ जज साहब ने कहा--यदि मुकहुमें की सच्चाई का बयान हमें मिले, तो में सरकार से काबिले-भाफी की दरख्वास्त करूँगा) लड़के ने फिर कहा--हमेंने जुर्म नहीं किया है। उसके बाव फैसले का दिन झुकरंर हुआ । कोर्ट सचाखच भर गया । हालाकि सभी यह्‌ समझ रहे थे कि सुकहुमा तो सिर्फ एक ढाँचा है, जज साहेब के लड़के को क्या होगा ? फिर भी खून के सुकहमे का फैसला था इसलिये बड़ी भीड़ थी। जज साहब ने एक बार अपनी निगाह ऊपर उठाते हुए अपने लिखे फेसले को पढ़ दिया--चूँक्ति हीरालाल, याने मेरा लड़का खूनी साबित होता है। इसलिये दफा ३०२ के मुताबिक मे उसे फांसी का हुक्म देता हूँ! ! सारा कोर्ट और सारा शहर इस फंसले से दंग रह्‌ गया] शाम को जब जज साहब श्रपने धर पहुँचे, तो उनकी स्त्री बेहोश पड़ी हुई थी और महलल्‍ले फो दस-बीस झौरतें उसे होह में लाने का प्रयत्न कर रहीं थौ, उनकी स्त्री ने जब यह सुना किं जन साहेब श्राय ह, तो उसने चिल्लाते हुए कहा कि जल्लाद तुम चले जीश्रो ! चले जगश्रो तुम !! श्रब मेरा वु्हारा कोई साथ नहीं} तब जज साहब ने दूसरे दिन, सुबह सारा प्रबन्ध कर, उसे अपने निजी रिश्तेदारों के साथ बनारस भेज दिया । वह बढ़ी हो चुकी थीं। कुछ दिन वहाँ रहेंगी, तो पुज्ञा-पाठ, साधु- सन्त श्रौर धमं-कमं भं मन लग जायगा। उसके बाद खुद भी, जब यह दुःख और अपने घर का यहु হাল होना वे देख न सके, तो पते को एक' दिन झाधी रात के समय गोली का निदाना बना लिया। इस तरह इन्साफ के नाभ पर वे मर कर भी अमर हो गये !




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