आनंदामृत अथवा जीवन की संस्कृति | Aanandamrat Athwa Jeevan Ki Sanskriti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : आनंदामृत अथवा जीवन की संस्कृति - Aanandamrat Athwa Jeevan Ki Sanskriti

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सुधाकर - Sudhakar

Add Infomation AboutSudhakar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मेत्री - की च्चा तो बहुत ই परन्तु इसके अस्तित्व का अमाव हो रहा है। पुरुष जिन लोगों के साथ दो चार. हँसी की बातें कर लेते है. उन्हें अपना मित्र कहने लग जाते हैं। ख्रियाँ भी जिनके साथ दो चार क्षण मिल बैठती हैं उन्दे सखी कह कर पुकारने लगती हैं। “मित्र” और “सखी” शब्दों का यह दुरुपयोग है। मित्र का मिलना इतना सहल नही । सखी की प्रापि इतनी सुगम नहीं । जव साधारण सी बस्तु को लेने के लिए बाजार में तुम्हे कई दुकानों पर फिरना पड़ता है, जब भाव- ताव, मोल आदि के निश्चय करने में तुम्हे, पर्याप्त समय देना पड़ता है तब न जाने मित्र जैसी अमूल्य वस्तु को खोजने में इतनी उदासीनता क्यो दिखाई जाती है ! इस उदासीनता का फल यद हुआ है कि मित्र- ओर सखी- ९]




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now