आत्म रचना अथवा आश्रमी शिक्षा भाग २ | Atam Rachana Athwa Ashrami Siksha Ii

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Atam Rachana Athwa Ashrami Siksha Ii by जुगतराम दवे - Jugatram Daveरामनारायण चौधरी - Ramnarayan Chaudhry

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रामनारायण चौधरी - Ramnarayan Chaudhry

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बीमारी कंसे भोगी जाय? ७ हमारा अपना घन्नान जितना बड़ा होता है, अतने ही डॉक्टर साहव हमें सर्वज्ञ और भेकमात्र तारनहार दिखाओ देते हैं। हम दीन वनकर अनके सामने ताकते रहते हैं। वैद-डॉक्टर वैसे घवराये हुभे, कायर भौर वेवकूक वीमारोंकी मूर्खताका लाभ न ओठायें तो फिर किसका आंठायें? वे जैसे जैसे हमारी घवराहट अधिक देखें, वैसे वैसे हमें अधिक चौंकाते जायं और अधिक दाम निकलवाते जाय॑ तो जिसमें आइचयें क्‍या? फिर वे देखते हैं कि हमें वीमारीके दुःखसे तो बचना है, परन्तु आहार-विहारमें . जरा भी संयम नहीं रखना है, अैश-आराम पर कावू नहीं रखना है और गादी-तकिया छोडकर मेहनत नहीं करनी है। मिसच्मि वे हरमे असी ही दवाभियां देते हैँ, जिनसे दो घड़ी अपर अपरसे आराम मालूम होता है और पीड़ा दव जाती है, परन्तु रोग शरीरे गहरा परता जाता है और थोड़े समय वाद अधिक जोर और अधिक वेदनाके साथ दुवारा फूट निकलता है। डॉक्टर औीमानदार हो और हमारा धन हरनेको मैसी युक्ति न करता हो, तो भी जब तक हम खुद आरोग्यके नियमोंका पालन करके लुसके काममें सहयोग न दें, तव तक वह हमें स्थायी रूपमें स्वस्थ कंसे कर सकता है? हम सेवकोंको तो खास तौर पर समझना चाहिये कि जैसे वीमारीसे घबराना शर्मकी बात है, वैसे ही वीमारीके वारे गौर शरीरके नियमोंके बारेमें असा अज्ञान रखना भी बहुत झोभास्पद नहीं है। हम आलस्य और अजज्ञानवदश अपना घर न संभालें, भुसे गन्दा रखें और गिर जाने दें, तो यही समझना चाहिये न कि हम गृहस्थ बनने लायक नहीं हँ? तव शरीर तो हमारी घरसे भी अधिक निकठकी, अधिक महंगी सम्पत्ति है। अुसके बिना हम तिनका भी नहीं तोड़ सकते और आअसके द्वारा हम वड़से वड़े काम कर सक्ते हं। अंसा शरीर परमेश्वरने हमें जन्मके साथ प्रदान किया है। अुसे हम जरा भी न जानें, अुसे संभालनेकी कला सीख लेनेका थोड़ा भी प्रयत्न न करें, तो हम असे सुन्दर और अनेक शक्तियों तथा गुणोसे युक्त शरीरके स्वामी वननेके लायक ही नहीं हँ) अुसके आअदार दाता परमेदवरके सामने हमें शर्मसे सिर नीचा कर लेना पड़ेगा। जिसलिओ शरीरके वारेमें, आरोग्यके वारेमें, बीमारियों और अनके अुपचारोंके वारेमें काफी ज्ञान प्राप्त करनेके लिओ सदा प्रयत्नशील रहना हम सेवकोंका धर्म है। स्कूल-कलिजोमं पद्नेसे दी वह्‌ ज्ञान मिलता है, यह निरा भ्रम है। हम खुद बीमार पड़ें, हमारे कुटुम्व और संस्थामें वीमारी आये, अुस समय हम छगनपूर्वक अुस वीमारीके कारण, लक्षण और अपचार जानकर लोगोंसे समझते रहें, तो हम कॉलेजमें पढ़े बिना भी आधे डॉक्टर तो वन ही जायंगे। जैसे परम आवश्यक कामके लिओ अतना प्रयत्न न करना शिथिलूता और मंद वुद्धिकी निशानी दै, मौर सेवकोके लिभे तो सचमुच लज्जित होनेकी वात है। शरीर और असके आरोग्यसे सम्बन्ध रखनेवाला ज्ञान स्वयं वीमारीसे बचनेके लिओ तो आवश्यक है ही, परन्तु हमारे सेवक-धर्मके पालनके लिओ भी वह निहायत




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