हिमगिरि - विहार | Himgiri Vihar
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
273
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अवतारिका
भारत की वर्तमान स्थिति अध्यात्मिक कारुणिक है! बतंमान पीढ़ी
के हम लोग जो दरिद्र, अशिक्षित, आलसी, गुलाम, अल्पजीवी और चु पले हैं,
उस अलौकिक जननी की सन्तान होने का दावा कठिनाई से ही कर सकते हैं ।
परन्तु सौभाग्यवश, इन दुर्भाग्यपूर्ण दिनों में भी कुछ अमूल्य निधियाँ जिन्होंने
हमारा परित्याग नहीं किया है--हमारा हिमालय, हमारी गंगा, हमारे मन्दिर,
हमारे देवालय और तीर्थ और ऋषियों की पुरातन संस्कृति--इनका ঘুন:হনহণ
हमें युगान्त-निद्रा से जाग्रत करने के लिए पर्याप्त है। एक ऐसे विश्व को जो
आन्तरिक संघर्ष से विच्छिन्त है, शान्ति और सद्भाव का सन्देश प्रदान करने
और अत्यधिक पाषाण-हुदय भी विश्व-बन्धुत्व की भावना भरने में समर्थ है ।
आज जो धुआँ हमें आच्छादित किये हुए है, जब तिरोभूत हो जाएगा, तो प्रकाश
हमारा आलिगन कर सकेगा । जब हमें अपवित्न करने वाले धुधले बादल
तिरोहित हो जाएंगे तब पूर्णचन्द्र अलौकिक आभा के साथ जगमगाने लगेगा ।
कुछ विद्याभिमानी लोगों ने अपनी मूखतापूर्ण बक-भक में कहा है कि भारतीयों
में राष्ट्रीय उद्गारों का अभाव रहा है । ओह ! वे जानते ही क्या हैं---
प्रपि मानुष्यमापस्यामो देवत्वात् प्रच्युताः चितौ ?
मनुष्याः ऊर्वते तन्त॒ यन्न॒ शक्यं सुरासुरैः ।
यत्र॒ जन्म-सदसराणां सहखेरपि भारते
कदाचितलभते जन्तुर्माचुण्यं पुण्य-सन्चयत् ॥
पुराणों का भी यही अभिमत ই | অন स्वरगंवासी आत्माएँ अपने
सत्कर्मों के प्रभाव को अलौलिक आननन््दानुभूति में खोने लगती हैं, तब वे एथ्वी
पर पूनज॑न्म लेने के लिए प्रार्थना करती है, जिससे कि वे कार्य, जो देवताओं
और असुरों के लिए भी असम्भव हैं, सम्पन्न करने में समर्थ हो सके गौर
ऋषियों का कथन है कि लाखों योनियों में भटकने के परुचात् भारतभूमि में
एक वार जन्मलाभ हो जाता है, क्योंकि जिन्हें स्वर्ग अथवा मोक्ष की लालसा
है, उनके लिए भारत एकमात्र कमंभूमि है । ऋषियों ने हमारे पर्वतों फा
गुणगान इस प्रकार किया है--
विस्तारोच्छय्रिणों रम्या विपुलश्चिन्नसानवः ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...