वेलि किसन रुकमणी री | Vali Krisan Rukmani Re

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Vali Krisan Rukmani Re  by महाराज पृथ्वीराज -Maharaj Prithvirajस्व. महाराज श्री जगमाल सिंह जी साहब - Sw. Maharaj Shree Jagmal ji Sahab

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनसाधारगा का পাল এব বলা লা आर पायः सन्दा क जीतन . व्यापारों से सस्बन्ध रखतों श्रीं। बोसरसात्मक দালান प्राय: বালা ५ आदि से सम्बन्ध रखती थी, जो जनसाथारगगा के सतब्र-प्रिय बोर (1115: द्रा জ্বল প্রা गेसी कत्रिताअझ 1 ল বালকপ্রাল का प्रत्येक घर परिचित रहता था । लोग पढ़ें-लिख नहीं होने थे, ता भी व इनक सुनने, बाद करने एवं गाने के बड़े प्रेमों हुआ करतेथे } 958 ... पथ-साहित्य हो नहा ; गय-साहित्य भी वाजस्थानों में এনাম च ) ५ से लिखा ज्ञाता रहा है। मसाध्यमिक्र काल में ते गद्य ने बढ़ी লাকা उन्नति को | यहाँ तक कि हिन्दी के प्राचीनतम गद्य के उदाहशा रहता धा श्रार य ख्यात गद्य में हुआ करतो घी | प्रत्येक बात का . विस्तृत बशान उनसे रहता था | राजस्थानी क्री एक प्रसिद्ध ख्यात- म्नि ९ भूता नणसा नाम कण व्यक्ति की लिखी हुई है। उसमें समस्त ॥ राजस्थान का इतिहास दिया गया है। राजस्थानी को ये ख्याल ५३ मध्यकालतान भारतवष क इतिहास क लिखने में अमल्य सहायता कराड शकर नहा हे इनक अलावा राजस्थान करा कथासाहित्य भौ .. ब्रहयुत विस्तृत है | हज़ारों कहानियों की पुस्तक राजम्धानो मं पाः ४ जायगा जा चहत्कथासंग्रह को कहानियां से किसी कदर কাম रचकन गी । राजस्थानी का एक ब 1 महाकाव्य प्रश्वीराजरासा हे। খর 1 ... यह महाकबि चन्द का बनाया हुआ है। परन्तु बाद में इसमें बहुत ` कचरे बटाया बाया गया है! यह महाकान्य हिन्दी-साहित्य मे ` £ ८ টু अद्वितोथ है । विक्रम की सत्रहवी सदी में बीकानेर क महागज ` ५०० कं, एण्डाराज न राजस्थान म एकर अमर काल्य




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