लज्जा | Lajja
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.35 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तरजा / 15 की जरूरत महसूस नहीं कर रहा है। वह समझता है कि वह ठीक ढंग से अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रहा है । उसे जो करना चाहिए था अर्थात् परिवार के सभी सदस्यों को लेकर कहीं भाग जाना चाहिए था वह ऐसा नहीं कर पा रहा है । था फिर ऐसा करने की इच्छा नहीं है । सुरंजन जानता है कि माया जहाँगीर नाम के एक लड़के से प्यार करती है । मौका मिलते ही वह उसके पास मिलने जायेगी । जब एक बार घर से निकती ही है तो फिर चिन्ता किस बात की | दंगा शुरू होने पर हिन्दू परिवारों का हातचात पूछना मुसलमानों का एक तरह का फैशन हैं । यह फैशन अवश्य ही जहाँगीर भी करेगा और माया उससे धन्य हो जायेगी । माया ने यदि किसी दिन जहाँगीर से शादी कर ली तो माया से दो क्तास आगे पढ़ता है वह लड़का । सुरंजन को संदेह है कि जहाँगीर अंततः माया से शादी नहीं करेगा । सुरंजन खुद भुक्तमोगी है इसीतिए समझ सकता है। उसकी भी तो शादी परवीन के साथ होते-होते रह गयी । परवीन ने कहा था तुम मुसलमान बन जाओ। सुरंजन का कहना था धर्म बदलने की क्या आवश्यकता है। इससे तो अच्छा है कि हम दोनों अपना-अपना धर्म मानेंगे। यह प्रस्ताद परवीन के परिवार वालों को नहीं जैंचा। उन लोगों ने एक विजनेसमैन के साथ परवीन की शादी तय कर दी । परवीन भी रो-धोकर शादी के मंडप में चली गई। सुरंजन उदास नजरों से एक टुकड़ा बरामदे की तरफ देखता रहा। किराये का मकान है न आँगन है न टहलने और दौड़ने के तिए मिट्टी । किरणमयी चाय का प्याला लिये हुए कमरे में आती है। माँ के हाथ से चाय का प्याता तेते हुए सुरंजन ने इस तरह से कहां दिसम्बर आ गया लेकिन सर्दी नहीं पड़ी बचपन में जाड़े की सुबह में खजूर का रस पीया करतः था मानो कुछ हुआ ही नहीं हो । किरणमयी ने लम्बी साँस छोड़ते हुए कहा किराये का मकान है यहाँ खजूर का रस कहाँ मिलेगा । अपने ही हाथों लगाये पेड़-पौधों वाला मकान तो पानी के भाव बेच आयी सुरंजन चाय की चघुसकी लेता है और उसे याद आ जाता है खजूर काटने वाले रस की हाँडी उतार लाते थे । माया और वह पेड़ के नीचे खड़े ठिट्ठुरते रहते थे । बात करने पर उनके मुँह से घुआँ निकलता था। वह खेलने का मैदान आम जामुन कटहतल का बगीचा आज कहाँ है सुघामय कहते थे यह है तुम्हारे पूर्वजों की मिट्टी इसे छोड़कर कभी कहीं मत जाना। उन्ततः सुधामय दत्त उस मकान को बेचने के तिए बाध्य हुए थे 1 जब माया छह दर्ध की थी तब एक दिन स्कूल से घर तौटते समय कुछ अजनबी उसे उठा ले गये थे। शहर में काफी तलाश करने के बाद भी कुछ पता नहीं चला था| वह किसी रिश्तेदार के घर नहीं गई जान-पहचान वालों के घर भी नहीं गई वह एक टेनशन की घड़ी थी । सुरंजन ने अनुमान लगाया था कि एडवर्ड स्कूल के गेट के सामने कुछ लड़के पाकेट में छुरा तिए हुए अड्टेबाजी करते थे वे ही माया को उठा ले गये होंगे ।
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