संक्षिप्त जीवन चरित्र | Samkshipt Jivan Charitra

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Samkshipt Jivan Charitra by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ | ज्हाचर्य, अपरिभ्रह इन पांच बतों को यथा शक्ति पांले-येही शहस्थो के आठ मूल गुण महा सुनियो ने वताए हैं । इस पुस्तक मे इन्दी दो शलोकं का कथन विस्तार से बताया गया है--ऊपर हम कह शुके ह कि सच्चे घुलके लोजी को सत्यमागं पाने के लिये खे देव, शाख, शुरु की श्रद्धा रखके उनकी भक्ति करनी याहिये-इस कथन में हमारे तीन नित्य कमे आजाते हैं-अर्थात्‌ देव पूजा, गुरु भक्ति और स्वा- ध्याय ( शास्र पढ़ना )। अन्य तीन का भाव यह है कि संयम (त~ यह आत्मसंयम हमारे जीवन'को बनानेके लिये बहुत आव- इच्छाओं को परि -शुरोर को स्वाध्ययुक्त रखने व जीवन यात्रा सुखमय बनाने को स्वाध्ययक्त रखने व जीवन यात्रा खमय बनाने के लिये अपनी इच्चाओं पर हमे अपना अधिकार जमालेना আর কু জনে ঘন बता आह उन शुद्ध खान पान ब संगति से वचना च जा यी सादा और शुद्ध खान पान व पहनावरखना चाहिये हमे भारत शत लल च स रना ज सतुषे रहना चाद्ये च भारत क वने शद्ध वख को व्यवहार करना चाहिये । वेष्या . सादि कौ संगति सें वचना चाहिये । ह ' धप भे हमको प्रत्येक प्राठ' काल और सायंकाल ध्यान का अम्यासे करना चाहिये-एकांत में बैठ कर अपने आत्मा का अभ्यास करना -एकांत में बेठ आत्मा का ध स्वभाव इस नीचे लिखे श्तोक के अनुरार विचारना एकोह निमलः शद्दो ज्ञानी योगीद गोचरः | वाचा संयोगजामावः मत, सर्वेपि सप्थाः ॥




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