अनूप प्रकास | Anup Prakas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
Dr. Rajmal bora
hindi books author , assistant professor in 1960 approximately 1970.
completed first ph.d in the hindi department of sri venkateswara Andhra pradesh state university, Tirupati.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनुप प्रकास/२५
पर गया और अपने उदाहरण से सेनिको को प्रोत्साहित किया, अन्त मे
को पीछे धकेल दिया और विजयी शाही सेना अर्घरात्रि मे अपने डेरो पर लौट आई।
इसी सायं को जब राजेन्द्रगिरि काली पहाड़ी पर आक्रमण कर रहा था, तो उसको
एक गोली लगी और दूसरे दिन प्रात उसकी मृत्यु हो गई। राजेन्द्रगिरि की मृत्यु से
सफदरजग का दिल टूट गया और इसके बाद उसने स्वयं किसी भी युद्ध में भाग
नहीं लिया। इस निर्भीक स्रु की मृत्यु के बाद अब सफदरजम के प्रदेश मे ऐसा
कोई व्यक्ति नही रहा, जिसमे युद्ध के लिए जोश हो|
अनूप प्रकास-- मे राजेन्द्रगिरि की मृत्यु का उल्लेख है, किन्तु जिस युद्ध
भे उसकी मृत्यु हुई, उसका उल्लेख नही है । इतना अवश्य लिखा है-बादशाह ने
सफदरजग की ओर से आखे मोड ली. (वजारत छीन ली, यह अर्थ लेना चाहिए)
इससे सफदरजग दु खी हुए। उस समय राजेन्द्रगिरि ने स्वामी धर्म का पालन् किया
और सफदरजग की सहायता की | उस समय जो युद्ध हुआ उसमें शत्रुओं का सहार
किया ओर अपने प्राण स्वामी के कार्य के लिये दिये, पक्तिर्यो इस प्रकार है
सुनि साहि लोचन भंग. सबदरजग उर अकुलाइकं |
दौरि यु दिल दुष पाइलै दल स्वामिधर्म धराईके || ८६।|
राजेन्द्रगिरि नृप सुभट मोट इरौल तरह হুল লী হি]
ओरै ताहा करिव सगर सन्न मार मिटा दये।। ८७),
क ओ फऔ
मन दियब स्वामि-धर्म मै तन दियव रचि रनघधार मै।
जस दियौ सबदरजंग कौ सिर दयौ हर के हर मै 1} ६३।।
लषि स्वामि-धर्म उजीर सबदरजग त्यौ सुनि साह क |
राजेन्द्रगिर के सुवन जुग राजेन्द्र किय चितं चाह कँ । | ६४||
उमरावगिर अनूपगिर जुग भ्रात जाहिर जगत শী
जागीर दसं गुन दई हप्तं हंजारिथा कहिं भक्त मै ।] ६५।।
राजेन्द्रगिरि की मृत्युं के बाद सफदरजग ने उसकं दोनो शिष्यो को (दोनो
भाई-भाई थे) राजेन्द्रगिरि के पुत्र मान कर उत्तराधिकारी बनाया ओर इनके साथ भी
वही सम्बन्ध रखा, अनुप प्रकाश मे उमरावमिरि ओर अनूपगिरि दोनो को 'सुवन' (पुत्र)
लिखा गया है किन्तु वस्तुत वे पुत्र न होकर शिष्य थे, जिन्हे वह अपने पुत्र के
समान मानता था, सफदरजग ने स्वय इन दोनो का टीका किया, राजेन्द्रगिरि की
मृत्यु ४ जून १७५३ ई0 को हुई, उसके तुरन्त बाद मे वह टीका सम्पन्न हुआ, स्वय
सफदरजग की मृत्यु अगले ही वर्ष १७ अक्तूबर १७९० ई0 को हुई।
३ मुगल का पतन भाग १ जदुनाद्य अनुवादक হামা দু সহ
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