तामिल वेद | Tamil Veda

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Tamil Veda by राजगोपालाचार्य्य - Rajagopalachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तवगे और पवर्ग के ग्रथस और अन्तिम अक्षर ही तामिल वे माला में रहते हैं प्रत्येक वर्ग के बीच के तीन अक्षर उससें नहीं होते । उदाहरणाथ क ख ग घ ड के स्थान पर केवल क और ड होता है ख ग घ का कास क से लिया जाता है । पर उसमें एक विचित्र अक्षर होता है जो न भारतीय भाषाओं में और न अरबी-फारसी में मिलता है। फ्रांसीसी से वह मिलता हुआ कहा जाता है और उसका उच्चारण र और ज के बीच में होता है । पर सब साधारण ड़ की तरह उसका उच्चारण कर डालते हैं । तामिल भाषा में कठोर अक्षरों का प्राव प्राघान्य है । प्राचीन और आधुनिक तामिल में भी अन्तर है । प्राचीन श्रन्थों को समभने के लिये विशेषज्ञता को आवश्यकता है । तामिल भाषा का आधुनिक साहित्य अन्य भारतीय भाषाओं की तरह .... बतमानकालीन विचार से भरा जा रहा है। पर प्राचीन साहित्य प्राय घ्मे-प्रधान है । तामिल सभ्यता और तासिल साहित्य के उद्गम की स्वतंत्रता के विषय में कुछ कहना नहीं पर इसमें सन्देह नहीं _ कि आये-सभ्यता और आय॑-साहित्य की उन पर गहरी छाप है और आय-भावनाओं से वे इतने ओत-प्रोत हैं अथवा यों कदिये कि दोनों की भावनाओं में इतना साम खस्य है कि यह समझना कठिन हो जाता है कि इनमें कोई मौलिक अन्तर भी हे । तामिल में कम्बल की बनाई हुई कम्बन रामायण है जिसका कथानक तो वाल्मीकि से लिया गया है पर भावों की उच्चता और चरित्रों की सजीवता में वह कहीं कहीं वाल्मीकि और तुलसी से भी बढ़ी- चढ़ी बताई जाती है । माण्क्य वाचक कृत तिरुवाचक सी प्रसिद्ध है। पर तिरुवल्लुवर का छुरल अथवा जिसके ११




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