पदसंग्रह [भाग 5] | Padsangrah [Bhag 5]

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Padsangrah [Bhag 5] by कविवर बुधजन जी - Kavivar Budhjan Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) ज्ञानमई हमको दरसाये । ऐसे ही हममें हम जानें, बुधजन गुन मुख जात न गाये ॥ श्रीजिन० ॥ ३ ॥ ९, नि ডি তি | ২ वधाई राज हो आज राजे, वधाई राज, नाभिरायके द्वार! इद्र सची सुर सन मिङि आये, सजि व्याये गजराज्ञै ॥ वधाई० ॥ १ ॥ जन्मसदनते सची पम रे, सोपि दये सुरराज । गजये धारि गये सुरगरिपे, न्टोन करने काजे ॥ वधाई० ॥ २ ॥ आठ सहस सिर करस जु ठरे, पुनि सिंमार समाज । स्याय घौ मरुदेवी करमे, हरि नाच्यो खख साजे 1! बधाई० !! ३ ॥ ठुच्छन व्यजन सहित सुभग ततन, कंचनदुति रवि रजे ! या छवि बुधजनके उर निशि दिन, तीनह्ञानज्ुत राजञ ॥ वधाई० ॥ ४ ॥ १० ज क तिता । ८ हो जिनवानी जू , तुम मोकों तारोगी ॥ हो० ॥ देक॥ आदि अन्त अविरुद्ध वचनतें, संजय বসল निरवारोगी ॥ हो० ॥ १ ॥ ज्यों प्रतिपाठत गाय वत्सकौ, त्यौ ही सुज्षकों पायेगी । सनसुख कारु बाघ जब आबे, तब तत्काङ उवारोगी ॥ हो० ॥ २ ॥ वुघजन दास वीनवै मता, या विनती उर धारोगी । उच्चि रद्यौ दं मोह जालूमे, ताकों तुम सुरझारोगी ॥ हो० ॥ ६ 0७ (११) राग-विखावर कनी 1 सनके हरप अपार-चितके हरष अपार, वानी शुनि




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