पदसंग्रह [भाग 5] | Padsangrah [Bhag 5]
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ५ )
ज्ञानमई हमको दरसाये । ऐसे ही हममें हम जानें,
बुधजन गुन मुख जात न गाये ॥ श्रीजिन० ॥ ३ ॥
९,
नि ডি তি | ২
वधाई राज हो आज राजे, वधाई राज, नाभिरायके
द्वार! इद्र सची सुर सन मिङि आये, सजि व्याये गजराज्ञै
॥ वधाई० ॥ १ ॥ जन्मसदनते सची पम रे, सोपि
दये सुरराज । गजये धारि गये सुरगरिपे, न्टोन करने
काजे ॥ वधाई० ॥ २ ॥ आठ सहस सिर करस जु ठरे,
पुनि सिंमार समाज । स्याय घौ मरुदेवी करमे, हरि
नाच्यो खख साजे 1! बधाई० !! ३ ॥ ठुच्छन व्यजन सहित
सुभग ततन, कंचनदुति रवि रजे ! या छवि बुधजनके
उर निशि दिन, तीनह्ञानज्ुत राजञ ॥ वधाई० ॥ ४ ॥
१०
ज क तिता ।
८ हो जिनवानी जू , तुम मोकों तारोगी ॥ हो० ॥ देक॥
आदि अन्त अविरुद्ध वचनतें, संजय বসল निरवारोगी
॥ हो० ॥ १ ॥ ज्यों प्रतिपाठत गाय वत्सकौ, त्यौ ही
सुज्षकों पायेगी । सनसुख कारु बाघ जब आबे, तब
तत्काङ उवारोगी ॥ हो० ॥ २ ॥ वुघजन दास वीनवै
मता, या विनती उर धारोगी । उच्चि रद्यौ दं मोह
जालूमे, ताकों तुम सुरझारोगी ॥ हो० ॥ ६ 0७
(११)
राग-विखावर कनी 1
सनके हरप अपार-चितके हरष अपार, वानी शुनि
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