उद्योग - प्रारब्ध विचार | Udhyog Prarabdh Vichar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विश्राम २ यद्वात्रा निजमालपट्टलिसित स्तोकं महरा धनं तत्याणोतिमस्थलेऽपिनितरां मरो ततो नाधिकम्‌ ॥ নীতা भव विततवत्पागा दति वृथा मा कृथाः करूपे पश्य पयोनिधावपि षयो गृहणाति तुल्यं जरम्‌५॥ विभाति पुरे मधेपर थोडाबहुत जो कुछ धन लिला है वह पुष्पको सटभूिमे ब सुमेहपर जहा जावे वहा उतनाही मिडेगा इसल्ये है पुरुष | तुम পয वारण करो भौर धनाल्य पुरो सामने अपनी दीन ( कटी ) दको मत एिखवो देखो षटफो चाहो को, कूपे मरे वा साग रेजे उतनाही जल पड़ेगा || ५ ॥ ु না যত हस्ति अहां वत्र सुराः सेनिकः . स्वगो दुर्गमुप्रहः परिक हररातो ब्रणः ॥ इतय्च्यवलान्वितोऽपि विभिः परः संगर तदत वमेव देवशरणं पिग्धगबृथा पौरुषम्‌ ॥६॥ जि इन्रका साक्षात्‌ बृहति रक्षक, वन्न रन्न, देवकी सेना, ख किठा ऐरावत हस्तीका वाहन और साक्षात्‌ हरिकी झपा इत्यादि अनेक आश्रप्ये यछ युक्त भी इन्द्रको युद्धमें अतिबदिष्ठ शत्रुओने मर्देन किया इसलिये से साया को तयाग केवट दैवकी सरणहीमे पुव है ओर ঘা पुरुणाधकों अनेका- नेक विक्कार हैं॥ ६ ॥ मभस्युमो वव्रु हतविधेस्तेऽपि वशगाः बिपिनः सोऽपि परतिनियतकरकप्रद्‌ः ॥ पठं कमाय यदि किममरैः विथ विधिना नमस्तत्कमभ्यो विधिरपि नं येभ्यः प्रसवति ॥ ७॥ महरि कहते हैं--हम देवताओंकों नमस्कार करें सोमी ठीक नहीं ेमंदयुद्ि तो आयही इन्द्र अक्षादि अनेकोंके आधीन हैं॥ विधिको नमन करें तो वह




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