श्री वचनामृत | Sri Vachnamrit

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Sri Vachnamrit by सुधादास साधु - Sudhadas Sadhu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २७). खत्यु के लिप तैयार ! म्म] साघु फकीर की शोभा तीन वातौ भेदै । (क) इष्टय की धिशाक्तना । (ख) शन्तः करण की शान्ति । (ग) निष्पाप बुद्धि । . ६६) लक्ष्मी के पात्रों और गर्स वालों को इन तीन बाता से अदृश्य सम्बन्ध होता है 1 (क कलेश । (ख। अशुभविचार | (ग) पाप का अधिक होता । (६०) बैराग्य चान्‌ को क्षण क्षण का कर्म ईश्वरापंण करना चाहिये। और घाणि का सदुपयोग करना चाहिये (&१) बुद्धिमान्‌ कौन ? जो संसार से प्रेम न करे । (६२) धनवान कौन ? ईश्वर ने जो दिया उसमें सन्तुष्ट रहना । (६३) আন্ত कौन ? संसार जिसको फंसा न सके । (&७) फकीर यरा त्यागि कौन ? जिलमे संसार की ` क्ममना नही । ६ (&५) कृपण कौन ? जो ईश्वर ने धरन दिया है श्नौर दान करने से संकोच करना है । ति (&दे) चार भकार के बुद्धिमान्‌ प्रञ्ु को वहत भिय हें । (क्र) कामना रदित विद्धान। [ल] तत्व जानने वाला ऋपि । | ग] नघ्रत्ता चालला श्रः महेन्त [धौं भञु कौ महिमा जानने वाला .त्यागी महात्मा | [হও] উজ ভি से संसारी जीव भय करके भागते हैं इसी प्रकार त्यांगी को भी संसार से दर रहना चाहिये ।




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