श्रीगुरुघर में दानविधि | Shriigurughar Men Daanavidhi
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
109
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १६ )
भमे या हठघर्मी है
कल
রা
चट पदाय चित सें जरयो तृण ज्यु क्रुद्धित होय ।
खोज रोज के हेत लग, दयो मिश्रज़्॒ रोय ॥ ४ ॥
भिश्रजू ( केशवदास जी ) पिछले दोनो सवैय सुनकर
शीघ्रही ऋरोधित हांगये और कोपाग्नि से चित्त में
तृण की सदर जलने लगे ओर रोजी के खोज में
लगकर रोपड़ अधात् शोकित होगये इस दोहरे ओर
अथा पर तत्वखालसा का सारा घमंड है ओर कहते
हैँ कि यदि उक्त सवेयों में गुरूसाहिव खालसा को
दान देने के बस्ते न करते जर उनकी स्तुति न
करते तो पडितजी क्यो दुःखित हाते इससे स्पष्ट प्रतीत
होता हे कि-सवेयों में सिहा के वास्ते दान पूजा की आज्ञा
है यह अजुमान उनका निद्नाय है बास्तव में पंडित
जी के शाकित होने का यह कारण था कि जब
गुरुसाहिव ने उनको सवेयों में लेफ तुलाईं देने के
थारते कहकर वाकी शुष्क प्रशंसा करदी सवा लक्ष
रुपेये का कुछ जिकर ज क्रिया तो वह घवड़ागगे ।
कि सवा साल धोखा देकर हम से जप पाठ करा
कर भगवती सिद्ध करालई अब क्या दिवाल है।
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