वैदिक धर्म | Vaidik Dharm

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vaidik Dharm  by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

Add Infomation AboutShripad Damodar Satwalekar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वैदिक ऋचाओंकी ओजस्विता घमं और संस्कृति संस्कृति धर्मका सूद्ष्मांश है । धमे संम्डृतिका स्थुराकार है। एति-क्षमा इत्यादि मनु द्वारा प्रतिपादित घ्म स्व साधारण हैं और वर्णधर्म ये विशेष धर्म हैं। इनमें कुछ दिखावटी भी गुण हैं। जो कि पाखण्ड-रूपमें धारण किये जा सकते हैं। उन्हें मनुने गौणता प्रदान को हे। यमान्‌ सेवेत सततं न नियमान्‌ केवलान्‌ बुधः । यमान्पतत्यकुर्वाणो नियमान्‌ केवलान्‌ भजन्‌ ॥ मचु० ४।२०१ बुद्धिमान्‌ सर्वदा यमोंका सेवन करे, केवल निय्रमोंका ही न सेवन करे । क्योकि यर्मोका पारनं न करकं कवल निय- मोका पालन करनेवाला पनित हा जाता हे । ` রি ৬১ यम नम्न है तन्नाहिसासत्यास्तेयब्रद्मचर्यापरिग्रहा: यम[: । योगशास्त्र सा० सू० ३० “अहिंसा , ( वैरत्याग ) ' सत्य ' मनसा, वाचा और कमणा सत्यका आचरण करना, “ अस्तेय ” सन, वचन, कर्मसे चोरी ने करना, “ बह्मचये” इन्द्रिय-संयम और ‹ अपरिग्रह ' आवश्यकतास भधिक धन न ब्ररोरना । ये पांच यम है | जे नियम ये है शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वर- प्रणिधानानि नियमाः । यो० सा० ३२ “ झीच ८ स्वच्छता; सन्‍्तोष 5 मनकी तृप्ति अर्थात्‌ तोष, तप = कट सहन; स्वाध्याय = अपने आप धार्मिक ग्रन्थोंको पठेना; दश्रर-ग्रणिधान = भक्निद्रारा दश्वरर्‌ ल्य भान्म- समर्षण । ये पांच नियम हैं। ! ° बास्तवमें यम ही संस्कृतिके विकासके मूछ उपादेय साधन हैं, जो जरू भर खादका काम करते हैं। नियमोंका सेबन तो दिखावदी सम्यताके रूपमें भी किया जा सकता है। नियमोंको वृक ओर विडाल-वृत्ति वाले भी धारण कर सकते हैं। बास्तवमें यमोंका पालन कठिन भी है। सम्यताऊे क्षेत्रमें नियमोंका पालन दिखावटीसी किय्रा जा सकता है । यम जोर नियम भाणायामकी साधनासे परिमार्भित होति दै । इस प्रकार धर्म और संस्कृतिका गृह सम्बन्ध हे। इनमें অন্য মামলা सूक्ष्म-बुद्धिका ही काम है। साधारणतया (१५७५ ) दोनों एक ही आकारमें उपस्थित होते हैं । हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हम इनक तत्वोंको समझे और समझायवें। संस्कृति और संस्कार जिन कार्योक द्वारा किसी वस्तुमें निर्दोषता, पर्णता और उपयोगिता छाई जाती है, उन्हे संस्कार कदते हें। संस्कारका दूसरा अर्थ है सूक्ष्माति सूक्ष्मांश अन्तःकरण पर पड़े विधयोंके प्रभाव । परन्तु यहाँ प्रथम अथ ही भपेक्षित हे। इस प्रकार संस्कार सोलह भागोंमें विभाजित हें। गृहस्थाश्रममें ही प्रायः संस्कार किये जाते हैं, वानप्रस्थ और संन्यास संस्कार ही ही इसके अपवाद्‌ है । १ गभाधान-संस्काग विद्या समाप्त करनेके पश्चात्‌ स्नातक विवाहित होते हैं। विवाहका उद्देश्य उत्तम-सन्तान लास करना ही है। समु- चित विधिसे समुचित समयमें खमे वीयैधान करे । इस विज्ञानका विस्तृत विवेचन संस्कार-विधि आदि पुस्तकोंल प्राप्त किया जा सकता है । २ पुसवन-संस्कार इस सस्कारका समय ग्भ-स्थिर होने समयते दृसेर या तीसरे महीनेमें हे। इस संस्कारके द्वारा गर्भकी रक्षा और उसके बिकासके उपायोंका प्रयोग करना पड़ता हैं। माताकों भी स्वस्थ ओर उत्तम-मना बनाया जाता है। ३ सीमस्तोन्नयन गे स्थिर होनेके चतुथ महीनेसे गार्मणी सत्रीका सन सन्तुष्ट, जारोग्य, गभभ-रक्षण, उसका संस्करण किया आता है । इससे गभकी सुन्दर वृद्धि प्रति-दिन होती है । ४ जातकर्म इस संस्कारम सुन्दर प्रम्‌ त-गृहका प्रबन्ध किया जाता हे । उसकी स्वच्छता आदि की ज्ञाती है। बच्चा जब उत्पन्न हो जाता है तो उसे सस्‍्नानादि करा कर हवनादि करके सोनेको रालाकासे मध द्वारा उसको निद्वापर भोम्‌ छिखा जाता है और कानोमे ‹वेदेऽसि ` यह वेद्वाक्य प्रथम उच्चारितं किथा जाता दै । इसका अभिप्राय यह होता है कि है बारुक ! तू ओमका जाप करनेके लिये उत्पन्न हुआ है और तू मधुर बाणीका ही प्रयोग करना। ' वेदो.<खि ' तेरा स्वरूप ज्ञान है। तुझे जीवनमें ज्ञानी विज्ञानी बनना है । ५ नामकरण-संस्कार जिस दिन बच्चेका जन्म हुआ हो उससे ग्यारहवें दिन बच्चेका नाम रखे । जो सार्थक और छोटा हो । नामकरणमें




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now