वाम मार्ग | Vaam Maarg
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.86 MB
कुल पष्ठ :
456
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तास्तिक्य २
समीप पहुंचे तो कुमार देव ने बालक को भी पहिचान लिया श्रौर श्राइचर्य
प्रकट कर पुछने लगा, “देवता ! इस बालक को तो प्राण दंड दिया गया था
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“हां महाराज ! ” सेवकों ने कुमार देव का परिचय ब्राह्मण को दे दिया
था। ज्ञाह्मण ने बात समझाते हुए कहा, “काशीराज श्रौर महारानी ने
इस पर दया कर इसे प्राणदंड से मुक्त कर दिया है श्र देव-निर्वासत की
श्राज्ञा दी है ।”
“सत्य ? प्रातः सभा में तो कुछ नहीं कहा था।”
“जी हां । तीसरे प्रहर वे महारानी सहित बदी गृह में पहुंचे और
सनोज से कहने लगे । बालक तुम को जीवन दान दिया जाता है, जिससे
तुम भ्रपना जीवत समाज सेवा में लया सको । तुम को हम दस वर्ष तक देश
से निर्वासन की श्राज्ञा देते है । श्राठ प्रहर के भीतर काशी की सीमा के बाहर
चलें जात्नो ।'
“यह बालक तो शरीर को बदल देना चाहता था, परन्तु जब महाराज
ने कहा, उन को हम वुद्धो पर दया श्राती है तो बालक हमारे लिये जीवित '
.. रहने के लिये उद्यत हो गया। महाराज ने इसको किसी दूसरे नगर में जा
. कर बसने के लिये एक सौ स्वर्ण मुद्रा भी दी है ।
“हुस तो इसके जीवन से निराश हो गये थे, परन्तु दिन के तीसरे प्रहर
'यह आया गौर हसने काशी छोड़ने की तैयारी कर दी ।”
कुमार इस वृत्तान्त को सुन कर श्रवाक् मुख बेठा रह गया। वह ब्नाह्मण
और उसके परिवार के लोग नीचे भूमि पर खड़े थे । कुमार को चुप देख
न्नाह्मण ने हाथ जोड जाने की स्वीकृति मांगी ।
इस पर कुमार ने कहा, “उज्जयिनी में बसने के लिये चलोगे ?”
“यदि भ्राज्ञा हो तो वहां भी चल सकते हे ।”
“वहां झा जाओ और कुसारदेव सेनापति को पुछ लेना। से तु को
बसने में सहायता दूँगा ।”
“विरंजीव हो महाराज ! ” ब्राह्मण ने श्राशीर्वाद दें दिया ।' जद रथ चलें
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