भक्त भारती | Bhakt Bharti

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Bhakt Bharti  by तुलसीराम शर्मा - TulsiRam Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 भरू! हो गयात्‌. वावला दरिको रिफिनेजा रहा, तू मशककी ही भति नभकी थाह छाने जा रहा। तू जा रहा किस ठोर है, किसने तुके बहका दिया! होते हण राज्याधिकारी मार्ग क्‍यों बनका लिया? ऋषि-युक्तियोनि कुछ नहीं भू च-चित्तको विचलित किया , राज्यादि-लोभ-ऊुय्क्तियोने और वढ़कर हित किया। सच सुन रहा शा कानसे, धुन ओर थी भनमे यसी , करिव था प्रण.रत कठिन विश्वास-प्रन्थी थी कसी ॥ कहने लूगा--'मिट जाउँगा, मिट जाडंगा, मिर जाउँगा , जव तक न पारगा उसे, घापिस न धरको आउँगा। है छाज यह उसको कि उसके नामपर मिट जाऊंगा , हैं दुःख जितने विश्वके उनसे न में घवबराउडँगा॥ अय फिर न कहना, देखना प्रभु ! क्‍या कहा यह आपने ? दशन कराये अपके, इस भक्ति-पुण्य-प्रतापने | सम्राट-पदका मुकुट भी सिरपर घराते आप हैं, लो मार्गमें मिलने छगे मेरे सकल परिताप हैं! दोहा सांसारिक सुख-भोग सब, मक्ति-मागकी धूर | यह अनुभव मुन्नकोी हुआ, हरि जनके अनुकूल ॥ [ ११




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