जैन जाति महोदय | Jain Jati Mahoday

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Jain Jati Mahoday by श्रीरत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पमाला - Shriratnaprabhakar Gyanpushpamala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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केशीभ्रमणाचार्य, (९) है बादविषधादम आत्मशक्तियोंका दुरुपयोग होने लगा. यघ्ष ধম और पशु ठिसलकों का फिर ज्ञोर बढने हूगा घामिक और सामाजिक प्रेपलनायेंमे भी परावतेन होने जगा. যত सब दाल उत्तर भरत रहे हुवे केशीभक्रमणाचायेने पुना तथ दक्षिण भरतम घिद्दारकरनेवाले मुनियोक्तो अपने पास युरुषा लिया अद्यपि फितनेक मुनि रह भी गये थे. एक्षिणविष्ठारी सुनि उत्तरमं आले पर कुच्छ अरसा के बाद घएहाँ भी यद दी दालत हुई कि ज्ञो दक्षिणमे थी | इधर नावा- येप्री घर फी घिगडी सुधारने मे ऊूग रहे थे डघर पशुद्दिसक यप्तत्रादीयोने अपना ज्ञोर को बढानेम प्रयत्नद्यीलू रन यज्ञक्का प्रचार फरने रूगे, घरफी फ़ूटफा यह परिणाम छुपा कि एफपिद्वित सुनिफा शिष्य ज्ञिस्का नाम बुद्धक्ीति था उसने समुदायस्े अपमासीत दों ज्ञन धम्मेसे पतित हो अपडा गौद्ध नाम योद् धम्म फा प्रचार करना शाद किया । घुझू फीतिने अपने धम्म फे नियम पएसे खिधे और सरल रखे छि दरेफ साधा- रण मनुष्य भी उसे पाल सके बन्धन तो षष किसी प्रफारका ----~ পিসি १ जन 'ेताम्बर आम्नाय के आचाराण सूत्र कि टीकार्मे घुद् धम्मेका प्रदर्तक मुल पुरष घुद्फीति पाश्चनाय तीय में एक साधु था जिसने बोझ धर्म चलाया, ६ दिगम्पर भाम्नायया दर्शनसार नामझा 1 भन्‍्ध लिखा है कि पाधनाथ के तीर्ष भे पिद्ित सुनिशा शिष्य शु्वीति साधु जन पघम्से से पतित हो मास महे सायर वर्ता हदा सपा नामत শীত মহ षरा ই বীজ সীম था है हि एुए एक राजा मुझ्योदोत का दुच्च था हट तापसो के पास दीष्ठारपो सोपि ऐोनेंव दाद আমৈঁ যল্লর হ হা স্ব शीर मे इसका समा भगयाय नदारीर ये समशतिन मल জীঙগা ट हे, श्टुप्ले सनेन अटवा परमं चो হি জয়, দহ এ




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