सत्यार्थप्रकाश | Satyaprakash

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Satyaprakash  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तिनालकगातलममावतलाकनविकव ममता || भूमिका के . ही. है हो इस लिये जो जिस गुन्य को मानता हेगगा उस गुन्थस्थ विषयक खरुडन सरडम भी उसो के लिये समभा जाता है।परन्तु कितने हो ऐसे भी हैं कि उस गुन्ध को मानते जानते शैं तो भी सभा वा संवाद में बदल लाते हैं इसो हेतु ने/जैन सेपग अपने गुन्घां को छिप “रखते हैं दूसरे भलस्थ को न 'देवे, सुजातेऔर न 'घढ़ाले इस लिये कि उन में ऐसो २ असस्थव बाते भरी हेंजिन का कोई को सत्र सो सिथों में थे नहीं दे सकता । झूठ बात का छोड़ का देना हो उत्तर है ॥ १३वे' समुल्लास में ईसाइयो' का मत लिखा है थे लोग बाय बिल को अपन, धर्मपुस्तक मानते हैं इन का विशेष्र समाचार उसी १३ तेरइवें' समरुलास में दे खिये। और १४ चौट्इवें समुस्लास में मुसलुमानें के मतविषय में लिखा है थे लोग कुरान के अपने मत का मूल पुस्तक मानते हैं इन का भी विशेष व्यवहार १४ वे' समुस्लास में देखिये । और इस के श्रागी वे दिकमत के विषय में लिखा है लो कोई इस ग्रन्थ कर्ता के तात्पर्य से विरुद मनसा से देखे गा उस को कुछ । भी अ्भिप्राय विदित न होगा कों कि वाक्याधंबोध में चार कारण छोते हैं, भ्ाकाहूता, योग्यता, अआसत्ति, और तात्पर्ण । लब इन चारों बातों पर ध्यान देकर जा पुरुष गुन्य को देखता है तब उस को गुम्थ का अ्भिप्राययधायो ग्य विदित छोता है । “श्राकाडः का, किसी विषय पर वक्ता का ञौर वाकस्व पदों कौ श्राकांच्षा परस्पर होती है । “योग्यता” वह कहाती है कि जिस से जो इोसके जेसे जलसे सोचना | “आसत्ति” जिस पद के साध जिसका सम्बन्ध छो उसी के समोप उस पढ़ को बोलना वा लिखना । “ तात्पर्य ”” जिस के लिये वक्ता मे शब्दोच्ारण वा लेख किया डो उसी के साध उस वचन वा लेख को युक्त करना । बइत से इठो दुरागही मनुष्य छोते हैं कि जो वक्ता के अभिप्राय से विरुष कल्पना किया करते हैं । विशेष कर मत वाले लोग क्योंकि मत कैश्रागुद्द से उनकी बुद्ि अन्धकार में फस के मट हो जाती है इस लिये जैसा मैं प्ररान, जैंनियों के गुन्थ, वावबल और कुरान को प्रथम हो वुरो इृष्टिसे न देख कर उन में से शुण्णों का गुइण और दोषों का त्वाग तथा असल मनुस्थ लाति को उम्रति के लिये प्रयक्ष कदर इं? वेसा सब को करना योग्य है। इन मतों के थोड़े २ हो दोष प्रकाशित किये हैं जिन का देखकर मनुथ लोग सत्याधसत्य मत का निर्णय कर सके और सत्य का गुहण तथा असत्य का त्याग करने कराने में समर्थ होवें | क्योंकि ए क मनुष्य जाति में बदका कर विरुद बुच्ि कराके शक दूसरे को शन्ु बना लड़ा मारना विददानों के स्वभाव से बच: है। यदापि इस गुन्थ को देखकर अ्विदान लोग अन्यथा हो विचारे'गे तथापि बुदिमान लेग यधायाग्य इस का भ्रभिप्राय समझें हलवयपतियललापरसटिमटनस्पापमकसनलरसदमयियम पक ददरदयपनपपपाय बन जलन




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