उपनिषदों के चौदह रत्न | Upnishdo Ke Chowdh Ratna
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
400
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनोखा अतिथि ७9
पूर्णाहति होनेपर परम श्रद्धासे ऋत्विकृगणको दक्षिणा बॉदते है ।
आकांक्षारहित होकर सात्तिक यज्ञकर्ता वेदविधिका पूर्णतया पालन
करते हुए समस्त कार्य सम्पादन करते है । ऐसे पवित्र युगमें
ऋषि वाजश्रवाके सुपरत्र उद्दालक मुनिने विश्वजित् नामका एक यज्ञ
किया । इस यज्ञमे सबेख दान करना पडता है| तदलुसार वाज-
श्रवस॒ ( वाजश्रवाके पुत्र ) उद्दालकने मी 'सर्ववेद्स दुदौ'---अपना
सारा धन पियको दे दिया । पि उदाट्कके नचिकेता नामक
एक पुत्र था | जिस समय छि छविज ओर सदस्योको दक्षिणा
बाँट रहे थे और उसमे अच्छी-बुरी समी तरहकी गोएँ दी जा रही
थी उस समय बालक नचिकेताके निर्मल अन्तःकरणमे श्रद्धाने
प्रवेश किया । नचिकेताने अपने मनमे सोचा---
पीतोदका जग्धत्तणा दुग्यदोहा निरिन्द्रियाः 1
अनन्दा नाम ते छोकास्तान् स गच्छति ता ददत्॥
(कठ० १।१। ३)
“जो गौएँ ( अन्तिम बार ) जल पी चुकी है, घास खा चुकी
है ओर दूध दुह्ा चुकी है; जो शक्तिहीन अर्थात् गर्भ धारण
करनेमे असमर्थ है, ऐसी गायोकों जो दान करता है वह उन
छोकोको प्राप्त होता है जो आनन्दसे शून्य है |!
यज्ञके बाद गोदान अवश्य होना चाहिये, परन्तु नहीं देने
योग्य गौके दानसे दाताका उछठा अमड्रल होता है । इस प्रकारकी
भावनासे सरल्हदय नचिकेताके मनमे वडी बवेदना हुई और
अपना बलिदान देकर पिताका अनिष्ट निवारण करनेके लिये
उसने कहा-- ,
तत कस्में माँ दास्यसीति।
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