श्री भगवती सूत्र पर व्याख्यान [भाग 3] | Shri Bhagwati Sutra Par Vyakhyan [Bhag 3]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
400
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[७३६ ] काकामोदनीय
है
व्याख्यान
प्रस्तुत कथन को समझने से पटले यद् देख लेना
आवश्यक हे कि कांता मोहनीय कम का लक्षण क्या हे ?
जो कम मुग्ध-मूढ़ बनाता दे, जिसके प्रभाव से आत्मा गफलत
में पढ़ती दे उसे मोहनीय कर्म कहते हैं । मोहनीय क८ फे दो
भेद हं--चारित्र मोहनीय ओर दर्शच मोहनीय । यहाँ चारित्र
मोहतीय कर्म के विपय सें प्रश्न नहीं दे, अतएय काज्ञांमोहनीय
शब्द का प्रयोग दिया गया है ।
कांन्ा का अ्थे यहां “अन्य दर्शनों की इच्छा करना” है ।
जैसे कोई सोचता है--जिन घर बेराग्य की ओर प्रेरित करता
है श्रोर संसार के आमोद-प्रमोदों के प्रति अरुचि उत्पन्न करता
दै। चार्वाक्र (नास्तिक ) मत कितना खुन्दर ই “जो ऋणं
रत्वा वृतं पिवेत् (कजं काढ श्रौर दूध प्री परीश्रो) का उपदेश
देता दै संलारिक एुख-मोग का समर्थन करता दै। उसमे पर
लोक का किचित् भरी मय नदीं ই; ক্ষপাক্ষি वह कदतां दै--भरमी
भूतस्य दस्य पुनरागमनं कुतः 7 अर्थात् यह जला हुआ शरीर
फिर दुसरे भव में नहीं आता और श्रात्माका সহিত হা
नहीं है। ऐसी श्रवस्था में जैन धर्म को त्याग कर चार्वाक्र मत
को दी ग्रहण करना चारिए। इस प्रकार के विचार आना
काक्षा मोदनीय कमं कठलावा है। कांजा मोहनीय के अन्तर्गत
उपलक्तण से श्रोर वातं भी समनो चादि । जेते संशय `
सोदनीय, परपाखंड प्रशंसा मोदनीय च्रादि आदिं ।
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