जड़ मूल से क्रान्ति | Jad Mool Se Kranti

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Jad Mool Se Kranti by कि॰ घ॰ मशख्वाला - Ki. Gh. Mashakhvala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घामिक ऋत्तिका सवाल ७ सृपरी कोरिन मात्र है । यही आदमी अगर सचमुच मुसरमाने या भीसाजी बन जाय, या भगिनसे शादी करके भगीका धन्धा करने ठ्गै, तव भुस जता कहा काटता है” जिस बातका जो अनुभव होगा वह हमें नही हो सकता। हमारी सारी कोशिश अपने हिन्दुत्व, ब्राह्मणत्व वगैराकों सुर- क्षित रखकर दरूसरोके साथ मेर वैठनेकी होती हे) वे हिन्दू नही हैं और ब्राह्मण नहीं है, यह भावना हमारे दिमागसे दूर नहीं हो सकती। सेक दिन नागपुर जेलमे मेरे जक साथी श्री वावाजी मोषे पि्डी हुमी जातियोकी सेवा और अनके अुद्धारके बारेमे मुझसे चर्चा कर रहे थे। चर्चाके दौरानमे अुनके महसे मराठीमे नीचे लिखे आशयका वाक्य निकल पडा “कंडी वार अंसा रूगता हे कि अिन छोगोके वहमों और मवश्रद्धाओोको दूर करनेके छिओ जिन्हे मुसक्मात हो जानेकी सलाह देनी चाहिये ! ” श्री वाबाजीके मुहसे यह विचार निकलना बहुत सोचने जैसी बात है। भिसका मतलरूव यह हुआ कि अुतको यह विश्वास हो गया है कि हिन्दू धर्मके वजाय मिस्छाममें वहमो और अन्वश्रद्धाओको हटानेकी शक्ति ज्यादा है) भौर यह्‌ वात बहुत हद तक सच मी हे। लेकिन यह भी समस्याका सच्चा हर नही है । क्योकि जिस्छाम भी त्रम, वहमो, जन्वश्रद्धामो मौर सकुचितत्तासे परे नही दै मौर त मानव-जात्तिकी आजकी समस्याओकों हल करनेमें समर्थ हे। साथ ही परे कुरातकों जैसेका तैसा स्वोकार नही किया जा सकता। अगर हम खुद जिस्झाम स्वीकार करनेके लिझे तैयार नही हो, ती किसी दूसरेकों यह सलाह कैसे दे सकते है ? और जिस्लाममे सरहूता और सीधी दृध्टिके होते हुओे भी वहुतसी मैसी वाते है, जिन्हे हमारी विवेक-बुद्धि स्वीकार नहीं कर सकती । यही हाल ओऔसामी, पारती बगैरा धर्मोका है। हम, हिन्दू लोग, जिन्दगीभर जेक विचित्र प्रकारकी वौद्धिक कसरत करलेके आदी हो गवे है। ओेत्षा तरफसे हमारी फिलसूफी ठेठ अद्वैत बेदातकी है । चिस रीकमे वृद्धिकों रखकर जब हम विचार करते हैं, तो दुनिया झूठी, देव झूठे, गुरु-जिप्य झूठे, विधि-नियेव शूठे, াদ-ৃহ্য धूठे, नीति-अनीति, हिसा-अहिसा, संत्य-झूठ सबको झूठे कहनेकी हद तक पहुच जाते हैं। और जिससे निकलकर जब दूसरी छीक पर चलते है, वो




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