बुन्देलखण्ड क्षेत्र में दलितों की शैक्षणिक स्थिति का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन | Bundelakhand Kshetra Men Daliton Ki Shaikshanik Sthiti Ka Ek Samajashastreey Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
49 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हम शनैःशनैः वेदिक काल से लेकर आधुनिक काल ओर अब तक का
लम्बा सफर तय कर आए हे परन्तु अभी तक रूढ़िवादी प्राचीन परम्पराओं को.
अपने से दूर नहीं कर पाये न तो इसमें अपेक्षित परिवर्तन मध्यकाल मेँ आया न
ही आधुनिक काल में, जबकि इस अन्तराल में अनेक _ महान सामाजिक `
चिन्तनवादियों का उदय हुआ, फिर भी इस समस्या को जिस सीमा तक दूर |
करना चाहिए था, दूर नहीं कर पाए, अपवादं को छोडकर चिन्तावादी परिवर्तन মর
करने की दिशा में कमोवेश असफल ही रहे ।
स्वतंत्रता के अर्द्ध शताब्दी के पश्चात् आधुनिक भारत में दलित समाज या
तथाकथित अश्पृश्यों की स्थिति में सुधार अवश्य हुए लेकिन अपेक्षानुरूप नहीं,
यदि इस स्थिति का चिन्तन किया जाये तो ऐसे प्रश्न उठेंगे कि वे कौंन से
कारण हैं जिनके प्रभाव स्वरूप दलित समाज की स्थिति मेँ अपिक्षानुरूप परिवर्तन
नहीं हुए तो संभवतः दलित समाज मे व्याप्त के परम्परारएं (जो दलित समाज के
बहुआयामी विकास में बाधक हैं) हैं जिनका त्याग वे नहीं कर पाए हैं तब ऐसे.
कारणों में अशिक्षा और जागरूकता का अभाव ही महत्वपूर्ण कारणों के रूप में
उभरेंगे |
प्रचार-प्रसार की कमी है। आज भी ऐसे क्षेत्र हैं जहां भौगोलिक परिस्थितियों
और संसाधनों की सुलभता की कमी के कारण शिक्षा की ढांचागत व्यवस्था और
` व्यापकता का अभाव है यही कारण है कि उन्हीं क्षेत्रों में पुरानी परम्पराएं अपने
मूर्त रूप मेँ बरकरार है जो दलित समाज के शैक्षणिक उन्नयन मे निर्यायक तथ्य `
` के रूप में परिलक्षित हो रही है।
घोस, डॉ0० प्रशान्त कुमार, जनगणना एवं जनसंख्या (2004), इलाहाबाद, पृ0सं0 14
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