अनासक्तियोग और गीताबोध | Anasaktiyog Aur Geetabodh

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Anasaktiyog Aur Geetabodh by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संतुति से खुशी और निन्‍दा से ग्लानि नहीं होती, জী. _ मौनधारी है, जिसे एकांतप्रिय है, स्थिरबुद्धि है; वह भक्त है। यह भक्ति आसक्तस्री-पुरुषों के भीतर संभव _ नहीं है । বা इस तरह हम देखते हैं कि ज्ञान प्राप्त करना, ` । भक्त होना ही आत्मदशन है। आत्म-दर्शन उससे भिन्न वस्तु नहीं है । जैसे एक रुपया देकर जहर भी ` खरीदा जा सकता है ओर अस्त मी लाया जा सकता है, वेसे ही यह नहीं हो सकता कि कि ज्ञान या भक्ति _ .._ से बन्धन भी प्राप्त किया जा सके और मोक्ष भी। . अहाँ तो साधन ओर साध्य बिलंकुल, एक नहीं तो लगभग एक ही वस्तु है, साधन की पराकाष्टादही मोक्ष है । और गीता के मोत्ष का अथ है परम शान्ति। ._ किन्तु इस तरह के ज्ञान ओर भक्ति को कमफल- ` त्याग की कसौटी पर चद्ना ठहरा । लौकिक करपना ` में शुष्क परिडत भी ज्ञानी माना जाता है। उसे कोई ८ काम करने को नहीं होता । हाथ से लोटा तक उठाना... भी उसके लिए कमबन्धन है । यज्ञशुन्य जहोँ ज्ञानी ` गिना जाय वहाँ लोटा उठाने जैसी तुच्छ लोकिक हु ५ किया को स्थान ही केसे मिल सकता है ? ২ क्‌ कल्पना में भनक्त से मतलब दहे बाह्मा-




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