आधुनिक हिंदी काव्य में आध्यात्मिक चितन का स्वरुप और विकास | Adhunik Hindi Kavya Me Adhyatamik Ka Swarup Or Vikas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
345
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)19
संचार करने वाली जीवन-शक्ति दोनो एक ही है । अर्थात् ब्रह्म सर्वत्र हे | हर चीज
ब्रह्म से व्याप्त हे । निस्सन्देह, यह समस्त संसार ब्रह्म हे, उससे ही यह उत्पन्न होता
है | उसमें ही यह लीन हो जाता है और उससे ही यह अनुप्राणित है | “सर्व खल्विदें
ब्रह्म तज्जलानीति शांत उपासीत“ जीवात्मा ओर ब्रह्मण्डीय आत्मा मे जो स्पष्ट दैत
दिखाई पडता है. वह अज्ञान का परिणाम है । इस अज्ञान से मुक्त हो जाओ, तब तुम
देखोगे कि तू वही है ओर “ब्रह्म हू |
अधुनिक दार्शनिकों ने इस संसार की एकता को इस रूपमे देखा कि वह
चेतना की उपज है, ब्रह्म की उपज है । अनेकता मे एकता का अर्थं उनके लिए यह
था कि प्रकृति की विविध प्रक्रियाएं ओर उसकी अनेकानेक घटनाएं ब्रह्म की, परमात्मा
की अभिव्यक्ति हैं |
उपनिषदों के बाद आध्यात्मिक चिंतन का विकास आगे किस प्रकार हुआ इसे
हम ब्राह्मण धर्म मे देख सकते हैँ |
ब्राह्मण धर्म और अध्यास्मिकता का स्वरूपः
जनता के सामाजिक ओर आर्थिक जीवन मे जो परिवर्तन हए थेवे वास्तविक
तौर से उनकी धार्मिक मान्यताओं ओर उनके विश्व दृष्टिकोण से भी प्रतिबिम्बित हुए ।
प्रारभिक दास प्रथा वाले समाज के आर्यो का धर्म ब्राह्मणवाद कहलाया | ब्राह्मणवाद
ने ईसा पूर्वं पहली सहस्राद के पूर्वद्ध मे, अर्थात् ईसा पूर्वं दसवीं ओर सातवीं
शताद्दियो मे मध्य रूप ग्रहण किया ओर क्रमशः पुरोहितो के साहित्य मे इसे विस्तार
दिया गया |
भारत मे धर्म पर आस्था सदा सामाजिक प्रगति के लिए प्रतिकूल नहीं रही |
सच माना जाय तो इसने प्रायः ही उत्पीड़न और शोषण के विरुद्ध प्रतिरोध का रूप
धारण किया। भारत में कितने ही सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष धार्मिक सुधारों की
आड़ में लड़े गये | इस प्रकार धार्मिक आन्दोलनों ने, विशेषकर उस समय जब वे
प्रारंभिक अवस्था में थे और उन्होंने किसी पंथ या संप्रदाय का रूप धारण नहीं किया
था, एक गतिपूर्ण और प्रगतिशील भूमिका अदा की | जैसा कि हमारे इतिहास के
कितने ही मोड़ों पर जनता में धार्मिक शिक्षाओं के प्रति आध्यात्मिक दृष्टिकोण ने
विलक्षण सृजनात्मक शक्ति को जन्म दिया-ऐसी शक्ति को जन्म दिया जो अभूतपूर्व
सामाजिक परिवर्तन लाने में सहायक हुई |
` छान्दोग्य उपनिषद्-तीन, 14/41
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