गणेश | Ganesh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.37 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तीसरा अध्याय यजाननका जन्स जब गणेज्न और विनायक एक ही व्यक्ति हैं तो फिर पिछठे अध्यायमें जो कथा दी गयी है उसको राणेशाजन्मर्की कथा भी कह सकते हैं। यह बात ठीक है फिर भी कुछ ऐसी कथाएँ हूं जिनको विशेष रूपसे गणेशाके जन्सकी कथा माना जाता है । इनमें भी प्रधान विनायक अर्थात् विष्नेदवर रूप विद्यमान हे परन्तु दूसरे विनायकोंका चर्चा नहीं है । गणेश का अकेले ही जन्म हुआ है । गणेशके जन्मकी कथा यों तो अन्यत्र भी मिठ्ती हैं. परम्तु विस्तारक साथ शिवपुराण स्कन्द पुराण ओर ग्रद्मदेवदपुराणसें दी हुई है । कथा दी हुई है कहना ठीक नहीं है यों कहना उचित होगा कि. कथाएँ दी हुई हैं क्योंकि सब एक दूसरेसे छुछ न कुछ भिन्न हैं । जिन लोगोंको पुराणोपर पूर्ण श्रद्धा है वह इस सस्वन्धमें यों समा- थान कर छेते हैं कि कस्पसेदसे घटनामेद होता रहता है । कोई पुराण किसी कलपकी घटनाका वर्णन करता है कोई दूसरे की । अस्तु में यहाँ इन कथाओंको थोड़ेमें दे देता हूँ इससे इनका साम्य और वेपस्य आप ही प्रकट हो जायगा । शिवपुराणकी रुदसंहिताके छुमारखण्डमं लिखा हे कि एक बार पावतीजीकी नहानेकी इच्छा हुई । वह घरके द्वार पर अपने शरीरके मेंउसे एक पुतला वनाकर वैठा गयीं । उसके सपुर्े यह काम था कि कोई भीतर स आने पावे । यह द्वारपाल गणेश थे । उन्होंने स्वयं शकरकों रोक दिया । इस पर उनसे और शिवके गणोंसे युद्ध हुआ इस लड़ाईमें विष्णु आदि सभी देव खिच आये । जव गणेशको कोई स हृरा सका तो शझरने उनका सिर काट दिया । इतनेमें पावती लहाकर बाहर निकलीं । उन्होंने गणेशकों मरा देखकर वड़ा क्रोध किया । उनकी ओरसे देवियाँ और माठकागण आ खड़ी हुई । इस तुमुरु संग्राममें देवोकी हार हुई । ऐसा अतीत हुआ कि अब जगतका संहार करके ही उसाका क्रोध शान्त होगा | विष्णुके बहुत अलुनय विनय करने पर वह इस वात पर मान गयीं कि यदि गणेश जिछा दिये जायँ तो छड़ाइई वन्दकर दी जायगी । तव कहीं से हाथीका सिर ठाकर छगाया गया । गणेश जी उठे और फिरसे शान्ति हुई । तवसे गणेश गजवदन हुए | सच देवोंने उनकी स्तुति की उनको गणनायकत्व प्रदान हुआ और यह निश्चय हुआ कि सबसे पद़िढे उनकी पूजा छुआ करेगी । त्रस्मबेचतंछुसमगके गणपतिखण्डसें दूसरी ही कथा है । शिवपावंतीके विवाहके वह दिनों वादतक पावंतीकों कोड सन्तान न हुइ तब उन्होंने श्रीकृष्णका घ्रत किया । जब वाठक गणेशका जन्म हुआ तो शनिक सिवाय आर सब देव देवी उसे देखने आये । बहुत आमह करनेपर शनि आये भी तो सिर नीचा किये खड़े रहे । पावंतीके पूछनेपर उन्होंने वतछाया कि मुझे शाप है कि जिस वाठककी ओर देख दूँगा उसका अनिट्ट होगा । पावंतीने न साना । दनिके सिर उठाते ही वच्चेका सिर कठकर गिर गया । तब विष्णुने एक हाथीका सिर काटकर जोड़ दिया । यह हाथी पुष्पभद्ा नदीके किनारे दक्षिणकी ओर पार्वे किये सो रहा था । बाडक जी उठा ॥ तवसे उसको गणपतिपद सिखा । एक वार कार्देवीय्य आदि क्षत्रिय नरेशोंकों मारकर परझुरामजी केढासपर शिवपावतीका दशन करने आये । द्वारपर गणेशने उनको येका । बातबातसें झगड़ा बढ़ गया । परझुराम के परझुसे गणेद्रका एक दाँत टूट गया । तबसे वह एकरदन एकदन्त हो गये । पावतीजीने जो यह देखा तो बह परझुराम को मारनेकों उद्यत हुईं । किसी प्रकार विष्णुने वीच-बचाव किया | पाकर स्कल्दुपुराररँ तीसरी कथा दी गयी है । उसके अनुसार जब गणेश गर्भ में आठ महीनेके थे तथ सिन्दर .नामके दैत्यने गर्भके भीतर प्रवेश करके उनका सिर काट डाठा । वह वेसिरके पैदा हुए परन्तु उनको सिन्ट्रके छुछत्यका पूरा ज्ञान था कुछ दिनोंकि वाद उन्होंने गजासुरको मारकर उसका सिर अपने कन्यें पर बैठा छिया और गजानन वन गये |
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