मध्यकालीन कवियों के काव्य सिद्धान्त | Madhyakalin Kaviyon Ke Kavya Siddhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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No Information available about छविनाथ त्रिपाठी - Chhavinath Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काव्य-सिद्धान्ो के निर्माण की पूर्व-पीठिका ७ ६
ममदनये ९६ कौ व्यार्या फा इतना समादर हुआ झौर मिष्ट जनमानस पर इसका इतना
गहत अभावे पडा क्षिं शान्द' का नात्पयं 'व्याकरण-सिद्ध-शब्द' ही स्वीकार कर लिया
गया और उपयुक्त अर्थ के साथ उसका वित्य या पृक्त सम्बन्ध स्वथमिद्ध समभा जाने
लगा ।* उस मान्यता का हो यह परिणाम हुआ कि आरम्म के काब्य-शास्त्रियों ने
শিবানী वाव्यम् दाव्दावी महित काव्यम'“* कह कर ही यह मान लिया था कि काव्य
को परिनाणा पूर्ण हो गई। ब्द झौर पर्य तथा इन दोनो के पारस्परिक सम्बन्धो का
স্পা उन्हे परपरा से प्राप्त तथा मान्य था। अर्य निश्चित करने की प्रक्रिया मे महा-
नाप्यक्षार ने मब्द-यमिनियो ॐ भी मेनं किया है।ै? उन्होने यह भी कहा द कि शब्द
यर मवं य म्न्य बहुन कृष्ट लोफ पर निभेर करता है ।* शब्दयो म परवल
केर वाने अप्ररीण नया भहनप्रयत्त भी प्रवीण हो मक्ते द ।५ यह अभ्यास की
स्प परनिभा धो ओर मकेत है ।
भाष्यकार ने विविध प्रमगों पर ऐसे घब्दों का भी प्रयोग किया है, जो फाव्य-
विवेचन था उसके मिद्धान-निारण भे व्यवहत्त हुए हई , अंसे - उपगीत, प्रगीत,
पम्प, प्रमनगीत, भ्रप्रमत्तगीन, मोग, मगल रात्रिद, फला, झनुभव्य और फत्यना ग्रादि\*€
पपि ये बन्द फाव्यानोचन मे जिनं पर्थौ मे प्रयुक्त टृए है. उन्ही प्र्थो मे यटा नरी है,
নং বুজি बौ दृष्टि मेये उमकरे वहत समीप है । 'दुप्ट शब्द ' या 'अपबब्द' से
शन्द-दोपो पर विचार फरने की प्रेण्णा मित होगी । च्युत-सम्कृति दोप লী भ्पप्टत
आाकरण-बिम्द्ध प्रयोग ही है ।
४. ग्रादि कवि वाल्मीकि के काव्य-सम्बन्धी विचार
वाल्मीकि के रामायण का आरम्भ उस हौली मे हुआ है, जिने आगे
च कर पौराणिक-भैनौ कृट्। गया । वात्मीक्रि ने तम एव स्बाध्याय-निरत-नारद यै यह्
शा कि इम विय्व मे श्रनेक उत्तम गणो ने युक्त आदर्श चरित्र किसका है। नारद ने
वान्मीक्षि के सामने राम का झादर्श चरित्र मश्षेप मे प्रस्तुत किया और उनके द्वारा
प्रम्पादित महान् कार्यो की रुूप-रेसा भी दे दी ।४* नारद के चले जाने पर तमसा-
तौव व॒न-प्रान्तर मे विचरण करते समय कारुणिक मुत्ति ने निष्ठुर निषाद के घाण
से विद्ध क्रोज्च एव विलाप करती हुईं ऋ्ौड्ची को देखा । उनका हृदय करुणाप्लाबित
६६ वही, पृ० ५६1
५४० वही पृ० ६२ “बागर्थाविब सपृवतती | रघुवश १॥१
१७२ मामहं भौर खद की काव्य परिभापाये ।
३ यमयं पद विधि २।१।१ का भाष्यं {
७६ सोत १।९।१ फा आप्य, पृ० ६४
७४ वही, पृ० ७३ ।
७६ द्रप्टव्य--फ्रमश पूण सम्, <>, ३०४, ३६, ३६, ४७५, ६१, ३५६ तथा ६।-। ३४,
२1६॥१०७ झौर ४॥२०० का भाप्य 1
७७ चान्मीविः रामायण, वा० फा० १।१-६८
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